तार तार जीवन (खंड काव्य )
भूपेन्द्र कुमार दवे

1
पीड़ा के पलने पर पलता
पनप रहा है मेरा जीवन
हर इक पल पर्वत-सा भारी
झेल रहा है मेरा जीवन
कहते हैं बस पुण्य कमाने
हर मानव धरती पर आता
पर मैं हर पल सोच रहा हूँ
पीडित क्यूँ है मेरा जीवन।
2
यह धरती है सुन्दर उपवन
इक पौधे-सा मेरा जीवन
पर बचपन से देख रहा है
पतझर हरदम मेरा जीवन
हर पौधे हैं पुष्पकलश से
कंटकमय है मेरा जीवन
हर पौधा वर्षा से पनपा
आँसू पीता मेरा जीवन।
3
पीड़ा के अक्षर ऑसू से
लिख-लिख जाता मेरा जीवन
गीतों की मधु रचना में भी
कंपित सुर भर जाता जीवन
इन गीतों की गुंजन जब भी
औरौं का भी दुख हरती है
प्रातिध्वनि हो तब पीड़ा में
मुखरित होता मेरा जीवन।
4
टूटी वीणा की सॉसों पे
सुर को साधे मेरा जीवन
रुँधे कंठ की कोमलता को
सुर की समता देता जीवन
सुन सॉसों की सरगम जैसे
ऑसू झर-झर झरना बनता
गीतों में करुणामृत भरकर
अपना परिचय देता जीवन।
5
ऑखें हैं पीड़ा की बेटी
ऑसू ही है इनका जीवन
नम पलकों का कंपन लेकर
कंपित रहता जिनका जीवन
हर ऑसू गिरने के पहले
पाता है छोटा-सा जीवन
ऑसू की इस माला को ही
कहता है जग मेरा जीवन।
6
जग की भूल-भुलैया में भी
जब जब फँसता जाता जीवन
हँसते हँसते रो पडता है
हर पल रोने वाला जीवन
हर पल करुणा का होता है
हर क्षण पीड़ा देता भारी
पर हँसने के अभिनय में भी
ऑसू खूब बहाता जीवन।
7
सुख में भी दुख का आर्कषण
देख रहा है मेरा जीवन
दुख का ताण्डव स्वयं दिखाकर
सुख के दर्शन पाता जीवन
सुख का है आभास सपन-सा
दुख का है बस अंबार सजा
दुख सहना, पर सुख के जैसा
मान रहा है मेरा जीवन।
8
मत देना, हे ईश, मुझे तुम
मंदिर में प्रतिमा-सा जीवन
पूजा तो तेरी ही होगी
पत्थर होगा मेरा जीवन
तू भक्तों में रम जावेगा
मेरा ख्याल रखेगा कौन
वज्र गिरा गर मंदिर पर, तो
खंडित होगा मेरा जीवन।
9
ऋतु वसंत के द्वार खुले हैं
पर उदास है मेरा जीवन
तू फूलों में मधुरस भरता
पाता आँसू मेरा जीवन
चिड़ियॉ गाती फुदक फुदक कर
कंठ रुँधा पर मेरा जीवन
पत्ते पत्ते शोर मचाते
पतझर बनता मेरा जीवन।
10
सावन के मेघों की चादर
ओढ़ रहा है मेरा जीवन
इसकी छाया वर्षा वाली
आँसू आँखों रखता जीवन
वन, पर्वत या निर्जन रस्ते
कौन चलेगा हँसते हँसते
मेघ सरीखे आँसू ही हैं
जिनको लेकर चलता जीवन।
11
मंदिर, मस्जिद, गिरजे सबको
देख चुका है मेरा जीवन
पर इक दर्शन प्रभू का पाने
तरस रहा है मेरा जीवन
साँसोँ की इक पर्ण कुटी में
भींग रहा जो निज आँसू से
देव उसे ही मान चुका है
मन ही मन में मेरा जीवन।
12
जाने क्यूँकर ढूँढ रहा है
कंकड़ कंकड़ मेरा जीवन
हीरे मोती लाख टके के
ठुकराता है मेरा जीवन
कहता है आँसू मोती है
पीड़ा की लंबी डोरी है
जग के आँसू पोंछ चला है
खुद के आँसू पीता जीवन।
13
चाह नहीं श्री सुख की जिसको
वह जीवन है मेरा जीवन
मोती माणिक भरी थाल के
बार बार ठुकराता जीवन
है विश्वास अटूट कर्म में
धर्म, मर्म का है यह ज्ञाता
नहीं तौलता धन कुबेर का
सरल सलौना मेरा जीवन।
14
बारह राशी नवग्रह चलकर
नाप रहे हैं मेरा जीवन
पर जाने किस चक्कर में ये
कोस रहे हैं मेरा जीवन
पंड़ित ज्ञानी हार चुके हैं
परिभाषित करने जीवन को
हर ज्ञानी पोथी के अन्दर
ढूँढ़ रहा है मेरा जीवन।
15
स्वप्न सुनहरे सारे अच्छे
देख रहा था मेरा जीवन
आँख खुली तो मैने पाया
रिक्त मंच-सा सूना जीवन
कठपुतली बन कर्म पड़ा था
धर्म न जाने किधर छिपा था
आँखों में ले गूँगे आँसू
सिसक रहा था मेरा जीवन।
16
मरने के कुछ क्षण पहले की
साँसों से ही बनता जीवन
वरना दुख में कितनी साँसें
छोड़ चुकी थी मेरा जीवन
इस नभ में हैं जितने तारे
चाहे उतनी साँसें ले लूँ
पर आहों में, हर साँसों को
बदल चुका है मेरा जीवन।
17
पीड़ा ने नित आँसू रचकर
कितना मधुर बनाया जीवन
वरना उर के मृदुभावों को
व्यक्त नहीं कर पाता जीवन
आँखों से नित क्रोध टपकता
रग में होता खून उफनता
प्रेमाश्रू की ललक न होती
होता धुआँ-धुआँ सा जीवन।
18
प्यार मिले जीवन में जिसको
सक्षम उसका होता जीवन
है क्षमता जीवन में इतनी
जो चाहे कर सकता जीवन
जिसे चाहिये स्वर्ग धरा पर
चुन लेता है निधि कूड़े से
बुद्धि, शक्ति, बल जितना चाहे
प्यार मिले तो पाता जीवन।
19
पुण्य कमाना पाप बने तो
अच्छा कर्म करे क्या जीवन
करें भला तो बुरा कहें सब
भला करे क्यूँ किसका जीवन
इस उलझन में जाने कितने
पुण्य कमाना छोड़ चुके हैं
इस कारण बस स्वार्थ-सिद्धि में
जुटा हुआ है सबका जीवन।
20
कहते हैं कि सच नहीं छिपता
झूठ उजागर करता जीवन
अजर-अमर है फिर भी जग में
झूठेपन का अपना जीवन
झूठी आशा, झूठे सपने
पाल रहा है सबका जीवन
झूठी कथनी, झूठी करनी
गुत्थम-गुत्था करता जीवन।
21
भीष्म पितामह बता गये हैं
है बस इक प्रतीज्ञा जीवन
प्राण प्रतिष्ठा स्थापित करने
जुटा हुआ है सबका जीवन
पर प्राण की आहुती देकर
शर-शैया ही मिलती सबको
तब सबको ऐसा लगता है
है बस मृत्यु-प्रतीक्षा जीवन।
22
निंदा करने में सबकी तो
बहुत निपुण हो जाता जीवन
झूठ सत्य करने में देखो
बहुत चतुर बन जाता जीवन
पर जब खुद की निंदा होती
और तुच्छ सब जन कहते हैं
तब निंदा से निंदित होकर
आत्महंत बन जाता जीवन।
23
जिनमें किंचित दोष नहीं है
ऐसा भी क्या होता जीवन
कहीं, किसी कोने में मन के
कुछ ना कुछ तो पाता जीवन
जिस डाली पर फूल खिले हैं
उसपर काँटे छिपे पड़े हैं
जहाँ प्यार है वहॉ घृणा की
कुछ बूँदें पा जाता जीवन।
24
किरण ज्ञान की चहूँ ओर है
फिर क्यूँ ज्ञान न पाता जीवन
कुछ शिक्षा अनुभव भी देते
फिर क्यूँ सोता रहता जीवन
हमें ज्ञान प्रकृति ही देती है
आत्मज्ञान ईश्वर देता है
अच्छी बातें फिर क्यूँ जग की
नहीं कभी भी सुनता जीवन।
25
कर्तव्यों से हठकर चलकर
क्या से क्या कर डाला जीवन
तार तार कर परिधान धर्म का
कर्महीन कर डाला जीवन
धर्म कर्म के गठबंधन को
तुच्छ समझ यह क्या कर डाला
किया कर्म जो न करना था
अब तो सहना होगा जीवन।
26
खेल रहा था धूलि कणों में
कितना मोहक अपना जीवन
लोट लिपट कर हँसता था वह
माटी खाता प्यारा जीवन
नहीं जानता था वह लेकिन
लगती थी क्यूँ प्यारी माटी
किसका बचपन जान सका है
माटी होता सबका जीवन।
27
पलने से उठ पनघट जाना
कितनी जल्दी सीखा जीवन
पनघट आकर जाने कितनी
चंचल बातें करता जीवन
पर जाने कब किस कारण से
चंचलता तज देता जीवन
पनघट से मरघट चलने की
चाल अनोखी चलता जीवन।
28
प्यार मिले तो सुख भी मिलता
सुख से मिलता प्यारा जीवन
पल दो पल की मुस्कानों से
हरदम हर्षित रहता जीवन
खुश रहना खुश रखकर सब को
यही प्यार का सारतत्व है
प्यार मिले तो प्यार प्यार में
कोमलता भर लाता जीवन।
29
जग में सब जन उससे जलते
जिसका होता अच्छा जीवन
और क्लेश भी वे ही पाते
स्वच्छ रखे जो अपना जीवन
क्यूँ हैं वो हमसे अच्छा बस
यही हीनता मन बसती है
इसी हीनता के ही कारण
ईर्ष्या मन में लाता जीवन।
30
लगता जीवन ऑधी जैसा
जब चाहे तब बिखरा जीवन
किन्तु प्रकाश कहीं से पाकर
पल में सुन्दर बनता जीवन
इक पल मैला, इक पल उजला
है जीवन का रूप अनोखा
शिल्पी साँसें, पत्थर जीवन
बस प्रहार ही सहता जीवन।
31
लिखता था बस बिछी रेत पे
अपनी गाथा मेरा जीवन
सारे अनुभव, सारी बातें
लिख-लिख कर ही खुश था जीवन
सब लिखकर जब मैने देखा
सब लिखकर भी कुछ न लिखा था
रेत सभी कुछ पी जाती थी
आँसू ज्यों पीता था जीवन।
32
पापी से ही पाप कराने
खूब प्रलोभन देता जीवन
हरपल लगता ऐसे जैसे
पापों की है माला जीवन
तृष्णा के कलशों के अन्दर
कैद हुआ हो जाता जीवन
रह जाता है पास हमेशा
भय चिन्ता में डूबा जीवन।
33
है नाजुक पर हिम्मत देखो
तूफानों से लड़ता जीवन
लहर अनेकों ऊँची उठती
एक अकेला होता जीवन
पतवार बिना ही किश्ती खेता
नमपलकों के आँसू पीता
नाजुक साँसें गिनती की हैं
पर हताश ना होता जीवन।
34
ऐसे लोग मिलेंगे जिनका
भय संचालित करता जीवन
कया थर थर काँपा करती
जब जब भय में रहता जीवन
भय असत्य है, भ्रम भी है भय
भय है बस कमजोर कल्पना
पर प्रभाव है इसका व्यापक
जिससे हर क्षण डरता जीवन।
35
चंचल जग की चंचलता को
समझ नहीं है पाता जीवन
इस कारण ही धोखा खाता
सीधा-साधा अपना जीवन
मैने सोचा अच्छा ही है
सच्चा, अच्छा जीना जीवन
पर जग ये कभी न चाहे
पनपे कोई अच्छा जीवन।
36
नश्वर काया के अन्दर ही
नफरत का है फैला जीवन
पाप कमाने, पुण्य गँवाने
नफरत करता जाता जीवन
कहते हैं नफरत की ज्वाला
लाख बुझावो, बुझ ना पाती
और सुना है नफरत से ही
छिन्न भिन्न हो जाता जीवन।
37
दिल से दुआ दिये जाता है
पीड़ा में जो पलता जीवन
हृदय हृदय को तौला करता
आँसू जब जब बनता जीवन
द्वार खोल तब अपने दिल के
क्लेश सभी के हरता जीवन
दो पल में सब भेद पुराने
आँसू से धो देता जीवन।
38
तन्मय है जो छवि, चिन्तन में
रूप वही ले लेता जीवन
राम रूप नित जिसने देखा
उसका ही तर जाता जीवन
मैं निर्धन हूँ, मैने देखी
टूटी-फूटी कुटिया अपनी
थका थका-सा जिसमें लेटा
चिंतन करता रहता जीवन।
39
विविध रूप, सब एक रूप में
एक जन्म में पाता जीवन
पहन मुखौटा फिर भी देखो
रूप बदलता रहता जीवन
अंदर कुछ है, बाहर कुछ है
खालीपन की शर्म बहुत है
और मुखौटा बदल बदल कर
जग में फिरता रहता जीवन।
40
तिनका तिनका साँसें तो हैं
साँसों में है छोटा जीवन
इन साँसों का नीड़ बना है
जिसमें पलता मेरा जीवन
इक उड़ता है, इक गिरता है
नीड़ हमारा कब बनता है
फिर भी कुछ रिश्ते तिनकों के
जीवित रखता मेरा जीवन।
41
थकित त्रसित क्षण बीन बीन कर
समय काटता रहता जीवन
गंध फुल-सी बिखराने का
समय नहीं ला पाता जीवन
खिलने के पहले फूलों-सा
मुरझाकर रह जाता जीवन
और अधखिली पंखुड़ियों में
सकुचाता रह जाता जीवन।
42
धूप-छाँव की सजी सजायी
कुटिया में खुश रहता जीवन
नग्न देह पर फटे पुराने
परिधानों में रहता जीवन
नहीं गरीबी डरा सकी है
नहीं अमीरी दबा सकी है
तन गरीब पर मन अमीर हो
तो भी सुन्दर लगता जीवन।
43
बाहर का जब देख अँधेरा
भीतर दीप जलाता जीवन
और प्रेरणा पुण्य कर्म की
अन्तर्मन में लाता जीवन
मिल जाता है प्यार प्राण का
जिससे हर्षित होता जीवन
भक्ति, ज्ञान, श्रद्धा, तप, संयम
इनसे भूषित होता जीवन।
44
मधुर मनोरथ पूरे करने
कष्ट उठाये जाता जीवन
हृदय-स्त्रोत से फूट चला था
झरनों-सा आँसू का जीवन
तेरी लीला का अंत नहीं
मेरी पीड़ा का अंत कहाँ
तेरी माया मोह भरी है
क्लेश भरा है मेरा जीवन।
45
सृष्टि की जिन किरण कृपा से
प्रगट हुआ था मेरा जीवन
उन किरणों से दर्शन तेरा
पाने तरसा करता जीवन
मंदिर में जब दीपक जलता
तेरी मूरत जगमग होती
और आरती की किरणों से
मंत्रमुग्ध हो जाता जीवन।
46
हँसने का परिधान पहन कर
दुख में धीरज पाता जीवन
विपदा, पीड़ा मौन सहे जो
काल घड़ी वह बचता जीवन
स्नेह सरसता के घट भरकर
आहत जन को जो जल देता
वही प्यार का मधु पीता है
और अमर कर लेता जीवन।
47
होता है जब प्यार जगत में
प्यारा प्यारा लगता जीवन
प्रेम बिना तो तड़पा करता
प्यासा प्यासा सबका जीवन
देख चुका जो प्यार सलोना
घृणित कभी न होने वाला
प्यार अनोखा ऐसा पाकर
कितना हर्षित होता जीवन।
48
देख नहीं पाता है मधुऋतु
पतझर में ही पलता जीवन
साँसें भारी थकती जावें
जैसे तैसे कटता जीवन
सन्नाटे ही दफना जाते
साँसों की खामोशी को तब
जिसके कारण हाँफा करता
सफर अधूरा तजता जीवन।
49
वनवासी जब मन होता है
बनता राम सरीखा जीवन
पूण्य कर्म के पथपर आकर
रूप सलौना पाता जीवन
इस कारण ही अवतारों से
मानव का श्रृंगार हुआ है
पर जब मन अपने पे आता
करनी पर पछताता जीवन।
50
जीने का यह सारा सुख तो
एक पूण्य से पाता जीवन
सार्थक सारी साँसें बनती
एक पूण्य जब करता जीवन
दुख भी तब दुख-सा ना रहता
अंत.सुख जब पाता जीवन
साँसों का यह बड़ा सफर भी
सहज सरल कर जाता जीवन।
51
शोभा आभा पाकर तेरी
खुद को अनुपम करता जीवन
दर्पण में तेरी शोभा की
पाकर छवि खुश होता जीवन
अपनी आभा शोभा सारी
तू प्राणों में गर भर जाता
मैं न्यौछावर खुद ही करता
तेरे चरणों अपना जीवन।
52
आदिकाल के ऋषि-मुनियों की
बात नहीं है करता जीवन
अपना भस्मावृत शरीर में
अंतर्दर्शन पाता जीवन
आत्मशक्ति से बढ़कर इसको
दिखे न भव्य प्रसाद कहीं भी
यही सोचकर आत्मतृप्त हो
संत-रूप बन जाता जीवन।
53
पूरब की लाली में देखो
सपन सुबह का लाता जीवन
और दिवस की कर्म किरण में
खूब उजाला भरता जीवन
संध्या का क्षण, स्नेह मिलन का
दीप प्रतीक्षा का बन जाता
रजनी का आलिंगन करने
कंपित लौ बन जाता जीवन।
54
सपनों में अरमान जगाकर
जीवित खुद को रखता जीवन
जिन सपनों में सुमन खिले हों
उनका मधुरस होता जीवन
पर जब सपने बिखर गये हों
पौध भाग्य के उखड़ गये हों
भाग्य बिगड़कर नहीं बने तो
क्यूँ कर देखे सपना जीवन।
55
देव कभी तो दानव भारी
बनता है मानव का जीवन
स्वर्ग नरक की रेख यहीं पर
खींच लिया है करता जीवन
रह रह पछताने का आलम
क्यूँ कचोटता जाता जीवन
क्यूँ थोड़ा-सा पुण्य कमाने
पाप अनेकों करता जीवन।
56
यौवन की मस्ती का पानी
पल में पानी करता जीवन
दर्पण में मुख देख सलौना
पागल बन इठलाता जीवन
कल जो दर्पण बने ठने थे
आज दरारें छिपा रहे हैं
मटमैली चादर अब ओढ़े
छिप छिप रोता जाता जीवन।
57
बीती बातों के पलने पर
सपने देखा करता जीवन
आशा की टूटी बैसाखी
लेकर चलता जाता जीवन
व्यर्थ लकीरें भ्रम की हरदम
खींच स्वयं ही भ्रम में पलता
तड़प तड़प कर इस कारण ही
भ्रम की भाषा पढ़ता जीवन।
58
कटुता भारी, लज्जा गहरी
क्यूँ संजोये रखता जीवन
जीने का यह गरल मार्ग भी
छोड़ नहीं है पाता जीवन
कटुता से कटुता जगती है
लज्जा से सकुचाता जीवन
कूड़ा करकट-सा बनकर यह
अर्थहीन बन जाता जीवन।
59
है अभाग्य की सघन रात सा
मेघों के विप्लव-सा जीवन
चमक उठी तो गाज कहीं पर
आहत होता मेरा जीवन
घिर घिर कर घनघोर घटा भी
अंधकार को विकट बनाती
विकल देख तब निज प्राणों को
सावन-भादों बनता जीवन।
60
राम राज्य ही ढूँढ़ रहा है
राम बना यह मेरा जीवन
सत्य, अहिंसा, मानवता का
बना पुजारी मेरा जीवन
पर सीने पर गोली खाकर
राम राम कह जाता जीवन
पर अवतार जिसे कहते हैं
कभी बना ना मेरा जीवन।
61
माखन चोर बहुत प्यार से
कहलाता था नन्हा जीवन
फिर यौवन की मस्ती पाकर
रास रचाता सबका जीवन
पर अपनी लम्बी धारा को
कुरूक्षेत्र ले जाता जीवन
अंत समय में तीर नुकीला
मटिया-मेट कराता जीवन।
62
चित्रकार खुद बन इठलाता
तूली लेकर मेरा जीवन
मन में चित्र विचित्र रंग के
भरता रहता मेरा जीवन
रूप प्रदर्शित होता किन्तु
पीड़ा, संकट, कष्ट, नरक का
गरल पात्र मिश्रित रंगों का
लिये ठगा-सा रहता जीवन।
63
तूझको तेरा अर्पित करने
इस पृथ्वी पर पाया जीवन
तुझे समर्पित करने माला
पीड़ा में गुँथ डाला जीवन
द्वार बंद कर जाने क्यूँ तू
मूझसे छिपकर बैठ गया है
तूझे चाहिये कैसी पूजा
कैसे जाने मेरा जीवन।
64
अनंत वेग सब में है किन्तु
शिथिल बना है मेरा जीवन
पर करने विश्राम कहीं भी
जगह नहीं है पाता जीवन
मंदिर मस्जिद तेरे देखे
भक्तजनों के मेले देखे
उमड़ रही थी भीड़ वेग से
चैन कहाँ फिर पाता जीवन।
65
सबके अन्दर महक रहा है
प्यारा-सा इक न्यारा जीवन
सबके माथे मणि है सुन्दर
रोशन जिससे सबका जीवन
फिर क्यूँ है इतिहास हमारा
द्वेष घृणा के धब्बों वाला
छिपा रहे क्यूँ इसके पन्ने
आँसू-सा क्यूँ बहता जीवन।
66
बढ़ी चढ़ी-सी आशा इच्छा
लेकर क्यूँ है आता जीवन
परवाना बन दीप शिखा पर
क्यों इठलाये जाता जीवन
जल जाने को आतुर है पर
अध जलकर ही रह जाता है
अधजल इच्छा, अधजल आशा
दोनों का फल पाता जीवन।
67
जलने पर विश्वास जिसे है
है वह दीप शिखा-सा जीवन
ज्योति जगत की जीवित रखने
खुद ही जलता जाता जीवन
धुआँ आरती का पाकर भी
श्रद्धा के फल मिल जाते हैं
बुझने का क्रम बना रहे यूँ
क्यूँ न बुझेगा मेरा जीवन।
68
लिखी भाग्य ने जितनी बातें
वही ग्रंथ बन जाता जीवन
मेरी गाथा के पन्नों पर
पीड़ा ही लिख पाता जीवन
जो पढ़ता है, रो पढ़ता है
पन्नों पर पीड़ा की पाती
आँसू का सम्मान सदा ही
करता आया मेरा जीवन।
69
मुझको अपना ज्ञान नहीं है
कहता मुझसे मेरा जीवन
‘मैं कौन हूँ , कहाँ से आया’
मुझसे पूछा करता जीवन
‘जाना है किस राह, कहाँ पर
मंजिल कितनी दूर, सखे, है?’
मै भ्रमित क्यूँ इन प्रश्नों से
पूछ रहा है मेरा जीवन।
70
पृथ्वी तल का वासी निर्बल
उससे निर्बल उसका जीवन
हल्का-सा दुख पाकर रोता
किंचित दुख में तजता जीवन
निर्बल हाथों हत्या होती
खुद की हत्या निर्बल करता
निर्बल से निर्बल की हत्या
निर्बल क्षण में करता जीवन।
71
तेरी गाथा अमर गीत में
बाँध रहा था मेरा जीवन
मेरी रचना में छवि तेरी
देख रहा था मेरा जीवन
तेरी छवि नित मुस्काती थी
गीत स्वतः रचती जाती थी
इसलिये गीतों की लय में
मस्त रहा था मेरा जीवन।
72
तेरे हाथ अनंत समय है
दो पल का है मेरा जीवन
युगों युगों तक तू चलता है
दो पग का है मेरा जीवन
सदियों का यह सृष्टि सृजन है
अस्त-व्यस्त क्षण मेरा जीवन
दर्शन तेरा क्षणिक रूप है
और प्रतिक्षा मेरा जीवन।
73
सच को मारो मर न सके ये
अजर अमर है इसका जीवन
छिप जाती आशायें लेकिन
निराश कभी न होता जीवन
प्यार भी गर करीब से देखो
घृणित कभी न होता प्यार
मरने का भी स्वाँग रचाकर
नष्ट न होता इसका जीवन।
74
घुप्प अँधेरा चहूँ ओर हो
फिर भी चलता जाता जीवन
पाकर कंपित प्रकाश कहीं से
ज्ञान-पुंज पा जाता जीवन
इस क्षीण प्रकाश से मानव
जीवन के कुछ पद चलता है
किन्तु त्रुाटियाँ हर पल कर के
पग पग ठोकर खाता जीवन।
75
पंख पखेरू से उड़ने की
बातें ही है करता जीवन
अपने उड़ने की बारी में
पंखहीन बन जाता जीवन
इधर उडूँ या उधर उडूँ मैं
इसी सोच में नहीं उडूँ मैं
चिड़िया की गोदी में बैठा
पंख पसारे रहता जीवन।
76
किरणें भी अस्ताचल पाकर
समेट चली हैं अपना जीवन
साँझ सुनहरी साथी बनकर
लिये चली है अपना जीवन
नीड़ों से कुछ झाँक रहे हैं
बच्चे भी कोमल पँखों के
ए बहेलिये, सोच जरा तू
लिये चला है किसका जीवन।
77
टूटे रिश्ते, झूठे नाते
क्यूँ गिनता है मेरा जीवन
इस दुनिया में कौन किसी का
कौन उधारी देता जीवन
मिलता है बस कफन फटा-सा
जाल बुना-सा कुछ शब्दों का
ताना बाना फटे कफन का
कैसे जोड़े टूटा जीवन।
78
इठलाती है मधु ऋतु देखो
देख देख कर अपना जीवन
हरियाली में लेकिन, देखो
पनप रहा पतझर का जीवन
फूलों पर जो मटक रहे हैं
उन भ्रमरों से कह दो जाकर
जो खिलते, मुरझाते भी हैं
है दो पल का सबका जीवन।
79
बना साँस का एक घरोंदा
एक हवा का झोंका जीवन
कुछ किलकारी कंपित क्षण की
गिरवी रखता रहता जीवन
सुख के क्षण सब हार चुका है
दुख का तनिक मलाल नहीं है
क्या गति होगी नहीं जानता
दुख ही दुख में पलता जीवन।
80
तू आयेगा मेरी कुटिया
कितना खुश था मेरा जीवन
धोकर स्वच्छ हुआ आँसू से
तज पीड़ा को मेरा जीवन
पर जाने क्या सोच, बिचारी
जर्जर कुटिया काँप रही थी
साँसों की थी पर्णकुटी यह
आँधी-सा था मेरा जीवन।
81
प्राणों को अपने पँखों में
पाला पोसा करता जीवन
पर आँधी की तेज हवा भी
लेकर आती अपना जीवन
और झपटकर पल छिन में ही
सारा चौपट कर देती है
बिन पँखों के थर थर कंपित
फिर भी साँसें भरता जीवन।
82
चाह नहीं मैं धन सुख पाकर
पाऊँ इक इठलाता जीवन
मोती माणिक भी ना चाहूँ
चाहँू बस अपना-सा जीवन
जिसमें हों बस साँसें अपनी
धरम करम का गठबंधन हो
चाहे बस विश्वास प्रबल-सा
सरल सलौना मेरा जीवन।
83
तू शिल्पी मेरी सोँसों का
जिसको काट तराशा जीवन
हर प्रहार था पीड़ा वाला
जिसको सहता रहता जीवन
था दर्पण जो मेरे सन्मुख
छवि तेरी ही दिखा रहा था
नहीं बताता था वह दर्पण
बना रहा तू कैसा जीवन।
84
बचा नहीं है कोई पत्थर
जहाँ तराश रखा था जीवन
भूल गये सब मातमवाले
कहाँ दफन था मेरा जीवन
किसने किसकी चिता जलाई
किसने किसकी कब्र बनाई
किसने कितने अश्क बहाये
कैसे जाने मेरा जीवन।
85
कल जो कल था आज नहीं है
उत्थान पतन की गाथा जीवन
सुख दुख के दो अक्षर से ही
लिखता अपनी गाथा जीवन
फिर क्यूँ मन विचलित करने में
कभी न होती हिचक जरा भी
शायद समझ नहीं पाता है
हार-जीत की माया जीवन।
86
तन मन निर्बल, साँसें निर्बल
निर्बल उससे ज्यादा जीवन
प्राणों में भी तेज नहीं तो
सबल नही हो पाता जीवन
धर्म कर्म की बातें तजकर
हर क्षमता भी निर्बल होती
मन की निर्मल इच्छा को भी
हर क्षण निर्बल करता जीवन।
87
हर क्षण मौसम बदला करता
चैन नहीं ले पाता जीवन
हरेक समस्या झुलसा देती
सुखद धूप न पाता जीवन
द्वेष, घृणा के मेघ सघन से
लेकर आते नेत्र सजल से
ठंडी साँसें ठंडी होती
पीड़ा से जब कँपता जीवन।
88
जब तक भाग्य नहीं बनता है
बड़ा अभागी लगता जीवन
तड़प तड़प कर, साँसें लेकर
जहर निगलता रहता जीवन
धर्म, कर्म, सुख, साधन सारे
भय शंका से घिर घिर जाते
छुटकारा इस कालसर्प से
पा न सका है मेरा जीवन।
89
झूठी आशा, विकट निराशा
इन पाटों में पिसता जीवन
मुठ्ठी भर साँसों के दाने
पीसा करता मेरा जीवन
पर साँसों का बनना मिटना
बता रहा है इस जीवन में
मृत्यु अचानक क्यूँ आती है
क्यूँ होता है सपना जीवन।
90
अश्क बहाकर दुख दर्शाना
सहज सीख ही जाता जीवन
आँसूँ पीकर धर्म धैर्य का
सहज समझ ही जाता जीवन
पीड़ा का सा खंजर जब भी
चीर हृदय को देता आँसू
लुप्त धैर्य यूँ हो जाने से
और कष्ट ही पाता जीवन।
91
डर जाने के डर के कारण
डरा सदा ही रहता जीवन
डर का अनुभव भी जब मिलता
निडर नहीं हो पाता जीवन
डरा देखकर और डराने
जीवन को डरपोंक बनाने
कसर जरा भी नहीं छोड़ता
जालिम जग में पनपा जीवन।
92
रिश्तों के बनने मिटने की
लम्बी गाथा होता जीवन
जाने कितने अच्छे रिश्ते
तोड़ चुका है अपना जीवन
कुछ रिश्ते हैं फिर भी ऐसे
जिनमें जहर घुला होता है
अच्छे मीठे रिश्तों की पर
पूजा हरपल करता जीवन।
93
आँसू का रिश्ता आँखों से
पीड़ा सहकर रखता जीवन
तन्हाई में दुख की बातें
आँसू से ही करता जीवन
माटी में गिरते आँसू को
अपने आँचल लेता जीवन
आँसू की इन बूँदों में ही
घुलता जाता मेरा जीवन।
94
मैं हूँ औ मेरे अंदर है
बिखरा बिसरा मेरा जीवन
कहते हैं अंदर भीतर का
एक सरीखा होता जीवन
पर जो मेरे अंदर दुख है
उसे छिपाये रखता जीवन
इस कारण बाहर से मेरा
कितना सुखमय दिखता जीवन।
95
मन वीणा टूटे तारों की
करती खंडित मेरा जीवन
सुर है कंपित, कंठ रुद्ध है
कैसे गाये मेरा जीवन
नहीं चाहता मैं कुछ गाऊॅ
फिर क्यूँ झंकृत कर दी साँसें
ले ले मेरी वीणा वाणी
तुझे समर्पित करता जीवन।
96
दुख असंख्य हैं, पीड़ा भारी
सजल नयन ही रहता जीवन
आँसू की अविरल धारा का
सूत्रधार बन जाता जीवन
हर पल आँसू की आहट पर
विचलित होता जाता जीवन
और असहाय बन जाता है
मेरा आँसू, मेरा जीवन।
97
चिंतायें जब आ जाती हैं
महाकाय बन जाता जीवन
सुख के दो क्षण पाकर देखो
छोटा-सा बन जाता जीवन
आशा की लौ जब जब जागे
जीवन में कुछ इच्छा जागे
आ जाती है द्वार निराशा
मरण तुल्य बन जाता जीवन।
98
महल सजे हों चाहे जितने
कुटिया में ही रमता जीवन
वस्त्र फटे, परिधान पुराने
पाकर खुश ही होता जीवन
क्रूर गरीबी खूब डराये
और अमीरी लालच लाये
आँसू का अवमूल्यन करने
कभी न विचलित होता जीवन।
99
इक जीवन ऐसा होता है
जो पवित्र कर देता जीवन
जिसके पदचिन्हों पर चलकर
पुण्य कमाने लगता जीवन
जिस जीवन से जीवन मिलता
है ऐसा ही माँ का जीवन
इसकी साया ईश सरीखी
अंत समय तक पाता जीवन।
100
बाहर आकर मधुशाला से
क्यूँ पछताये मेरा जीवन
आँसू ही पीते बैठा था
पीड़ा में मतवाला जीवन
मधुशाला के बाहर तू है
मैं हूँ औ मेरा आँसू है
तू साकी तो आँसू हाला
है मधुशाला मेरा जीवन।
101
बाहर पीड़ा आग लगाती
भीतर भीतर जलता जीवन
धरम करम की बात न कीजे
है जमघट साँसों का जीवन
चिन्गारी-सी हैं बस साँसें
धधक धधक कर भरती आहें
बुझ जाती जब मन के अंदर
कुंठित हो रह जाता जीवन।
102
भाग्य लिखे अच्छे अक्षर पर
समझ अर्थ ना पाता जीवन
सच्चे मन से सच्चाई को
भाँप सका ना पगला जीवन
पीडा से पीड़ा ही उपजी
साँसों से साँसें ही उलझी
इस कारण जब मौका चूके
जीवन भर पछताता जीवन।
103
आजादी की मनोकामना
जीवन भर है करता जीवन
बंधक बन निज कुंठाओं में
व्यथित थकित ही रहता जीवन
बँधती जाती कड़ी साँस की
यह तन है कारागार बना
मुक्त प्राण तब हो ना पाते
बाँध इसे भी रखता जीवन।
104
पापी मन ही पाप कराता
पतित पाप से होता जीवन
पापकर्म करने की लालच
जीवन भर है पाता जीवन
पुण्य कमाना बहुत कठिन है
ऐसा सोचा करता जीवन
इस कारण ही पापी मन में
पाप बहुत पनपाता जीवन।
105
ऐसे कर्म कभी हो जाते
लज्जित जिनसे होता जीवन
कालिख-सी पुत जाती मुख पर
कलुषित होता सारा जीवन
पछताना भी काम न आता
प्रायश्चित भी व्यर्थ कहाता
जीना भी तब नहीं सुहाता
व्याकुल होता रहता जीवन।
106
जग में ऐसे लोग भरे हैं
तार तार है जिनका जीवन
कुछ क्रोघी, कुछ कपटी भी हैं
जिनसे कलुषित होता जीवन
कुछ मिथ्थावादी जन होते
सच्ची बातें झूठी करते
पर यह दोष अहं का ही है
जिससे गिरता प्यारा जीवन।
107
माना विचार गूँगे होते हैं
पर ये रचते सारा जीवन
इनकी भाषा शब्द बिना पर
अर्थपूर्ण है इनका जीवन
गति कर्म को इनसे मिलती
गति धर्म की इनसे बनती
उपजे गर ये कुमति संग तो
नष्ट भ्रष्ट हो जाता जीवन।
108
सन्नाटा या हो कोलाहल
बधिर सरीखा बनता जीवन
अच्छी बातें सब करते हैं
सुनता है पर किसका जीवन
इस जग में सब गूँगे बहरे
अंधों का भी जमघट-सा है
मूक प्रार्थना इस कारण ही
कर पाता है मेरा जीवन।
109
धर्म कर्म के तोरण सारे
सजा चुका है मेरा जीवन
तेरी इच्छा पूरी करके
कितना अच्छा लगता जीवन
था लक्ष्य सिर्फ पुण्य कमाना
पाप मुक्त हो तुझमें रमना
पर अब मैं यह देख रहा हूँ
दूर तुझी से रहता जीवन।
110
जादु टोना सब कर डाले
पर ना बदला मेरा जीवन
पूछा पंड़ित ज्ञानी से भी
पर न सम्हला मेरा जीवन
जप तप में भी सार नहीं था
तंत्र मंत्र भी सब व्यर्थ गये
पूजा पाठ कराने पर भी
पाप मुक्त ना होता जीवन।
111
निंदा, राग, उपेक्षा सबकी
जैसे तैसे सहता जीवन
पर इस पर भी जग में देखो
पात्र हँसी का बनता जीवन
घृणा, द्वेष या रोब जमाना
जिसने सीखा बड़ा बना है
पर सरस सरल संत बना जो
व्यर्थ कहाता उसका जीवन।
112
जो खोज नहीं पाये दिन को
ऐसी रातें पाता जीवन
सुबह किरण आने के पहले
जाने क्यूँ छिप जाता जीवन
अहंकार वह अंधकार है
जिसे प्रकाश से अति घृणा है
सारे अवगुण साथ इसी के
करते धुँधला सारा जीवन।
113
एक बूँद नीरस अजान-सा
भवसागर में लगता जीवन
साँसों के उत्थान-पतन का
बेकल लहर सरीखा जीवन
नश्वर नावें बढ़ी चली हैं
छोड़ किनारा थकी हुई हैं
इसी घड़ी है आती आँधी
जिसको अर्पित होता जीवन।
114
मन मंदिर में दीप जलाया
मैंने पाकर अपना जीवन
जग के विस्तृत अंधकार में
लगा दिवस-सा मेरा जीवन
पर वसुधा के हर कोने में
जाने कितने दुर्जन बसते
जिनके कारण पल भर में ही
शून्य सपन-सा बनता जीवन।
115
कल जो नीड़ बना था सुन्दर
वह था इक पंछी का जीवन
गाज गिरी तो बिखर चला जो
वह समझो है मेरा जीवन
इक पल हँसना, इक पल रोना
सब पाकर खोने का रोना
बात सरल सी है यह लेकिन
समझ नहीं है पाया जीवन।
116
अपनी निधि कंचन चमकीली
फैंक चुका था मेरा जीवन
हर पल भारी लाश उठाये
घूम रहा था मेरा जीवन
पर नीड़ों में कंपन रखने
आँधी से रखवाली करने
आशा की कुछ मुर्दा साँसें
पाल रखा था मेरा जीवन।
117
आँखों के मलते मलते ही
बदल गया है मेरा जीवन
कल तक माटी पे घुटने से
रेंग रहा था मेरा जीवन
माटी में मिलने के डर से
अब यह धुटने टेक रहा है
माटी का तन दो पल पाकर
माटी से है चिढ़ता जीवन।
118
विस्तृत वसुधा के कण कण में
कितना सुन्दर होता जीवन
फूलों की मोहक क्यारी-सा
बन जाता है प्यारा जीवन
पर क्यों मानव निज नीड़ों को
अपने हाथों तोड़ रहा है
क्यूँकर साँसें यूँ तड़पाकर
तिनका तिनका होता जीवन।
119
तन से ही कर नव तन धारण
किलकारी भर उठता जीवन
तन से तन का बंधन पाने
आकुल हरदम रहता जीवन
पर जब तार हुआ जाता है
साँसों का परिधान पुराना
जीर्ण वसन तज तब इस रज का
नव तन धारण करता जीवन।
120
पंख कटे जब छिन्न हुए तो
उड़ना चाहे मेरा जीवन
वर्ना उमंग नहीं जरा-सी
जगा रहा था मेरा जीवन
कहते हैं कटु अनुभव से ही
मिलता है शिक्षा का मधुरस
अभाव ही उत्साह जगाता
जिससे नवरस पाता जीवन।
121
सार नहीं है, तथ्य नहीं है
इक नाटक-सा लगता जीवन
पर्दा उठता गिरने को ही
रिक्त मंच-सा रहता जीवन
कुछ पल के इस नाटक में बस
शोर-शराबा साँसों का है
यह हंगामा शांत हुआ तो
इक सन्नाटा लगता जीवन।
122
तेरा जीवन तुझको अर्पित
करना चाहे मेरा जीवन
तू चाहे तो छिन्न भिन्न कर
नष्ट करा दे मेरा जीवन
नवजीवन की आस नहीं है
पुनर्जन्म की चाह नहीं है
इच्छा है बस तुझको पाकर
तज दूँ अब मैं अपना जीवन।
123
खिलता था कुछ क्षण फूलों-सा
मौसम पाकर मेरा जीवन
कितनी जल्दी मुरझाता फिर
यह नाजुक-सा मेरा जीवन
क्षण भर की यह सुन्दरता भी
अब आने से है कतराती
क्यूँ कुरूपता सजा रही है
हर मौसम अब मेरा जीवन।
124
जो सुख दुख हमको सहना है
वह सुख दुख सब सहता जीवन
बीते क्षण की मधुर याद में
मंद मंद मुस्काता जीवन
पर होनी जब रूप बदलकर
क्षणभर का सुख हर लेती है
फिर तब जाने किन साँसों से
जीवित खुद को रखता जीवन।
125
क्यूँ यह तेरे द्वारे आकर
अपराधी बन जाता जीवन
तेरे ही कहने पर मैंने
धर्म कर्म से पाला जीवन
तेरे ही कारण यह मैंने
छोटा-सा है पाया जीवन
बड़ा पाप फिर कैसे करता
नन्हा-सा यह मेरा जीवन।
126
अभिलाषायें सजा रहा था
मन में मेरे अपना जीवन
सपनों का संसार सजेगा
बस इसी ख्याल में था जीवन
सारे साधन जुटे हुए थे
सपने सारे धैर्य धरे थे
पर जब प्रयत्न जरा न जागे
कैसे सुन्दर होता जीवन।
127
पीड़ा की शर-शैय्या पर ही
हरदम करवट लेता जीवन
आँहें भरता, आँसू गिनता
हर करवट पे मेरा जीवन
घावों से कब तक मैं पूछूँ
पाप किया है, कितना, कैसा
पूछो जग से, जग कहता है
पापी पूरा मेरा जीवन।
128
साँसें मेरी बनकर आहें
छीन रही हैं मेरा जीवन
उस आँधी को टेर रही हैं
जिनके कारण बिखरा जीवन
साँसों की पतझर में काया
जाने कब से ठूँठ बनी है
फिर भी रहता मेरे अन्दर
कुछ घायल, कुछ शव-सा जीवन।
129
मधुऋतु कैसे सहन करेगा
पतझर का यह पाला जीवन
कैसे बयार में झूमेगा
आँधी से ही लड़ता जीवन
कैसे फूलों संग रमेगा
सूखी डालों पलता जीवन
कैसे तटपर चुप बैठेगा
तूफानों से लड़ता जीवन।
130
आँसू के ही पास रखा है
गिरवी बनकर मेरा जीवन
कष्ट सूद-सा बढ़ता जाता
पीड़ा में यूँ बिंधता जीवन
कितनी साँसें मैने अब तक
आहों में ही परिणित कर दी
कैसा सौदा पीड़ा से यह
कर आया है मेरा जीवन।
131
नयन सदा मेरे नम रखने
आँसू लेकर आता जीवन
जलराशी के प्रलय सिन्धु में
थर थर कँपता जाता जीवन
जैसे पीड़ा भवसागर हो
जिसमें डूब रहा हो चिन्तन
हर चिन्तन पर चिंता हावी
जिस कारण दुख पाता जीवन।
132
कितने पत्ते बचा सका है
इस आँधी में मेरा जीवन
पल्लव छूटे, डाली टूटी
बच पाया है सूना जीवन
सूनेपन के संग सभी हैं
बिखरा, उजड़ा, सहमा जीवन
मैं सोचूँ क्या बचा सकूँगा
अब के आँधी अपना जीवन।
133
रुकती साँसें पीड़ा पाकर
दर्द छिपाये जाता जीवन
साँसें कब धोका दे जावें
समझ नहीं है पाता जीवन
फिर भी साँसों के रिश्ते को
खूब निभाये जाता जीवन
रुक ना पावें जब तक साँसें
जैसे तैसे चलता जीवन।
134
हल्की-सी पीड़ा के कारण
मानव बिखरा देता जीवन
पल भर की हो चाहे पीड़ा
पर मानव तज देता जीवन
कहते सब दुख एक कफन है
पहन इसे ही चलना होगा
पर जब दुख की बदली आती
तार तार हो जाता जीवन।
135
हँसने की बारी में देखो
संगी साथी पाता जीवन
पर जब अश्क बहाना पड़ता
साथ न कोई पाता जीवन
साथ सभी के हँसते रहना
अच्छा तो सबको लगता है
पर तन्हाई पाकर रोना
सहन नहीं कर पाता जीवन।
136
है अभाग्य बस इतना अपना
भाग्य जगा ना पाता जीवन
गिर जाते हैं हम पथ पर ही
जब जब ठोकर देता जीवन
उठने का उत्साह जरा भी
किंचित नहीं दिलाता जीवन
देता है बस दोष भाग्य को
बड़ा अभागी अपना जीवन।
137
कहते हैं बलवान समय है
समय नचाये जाता जीवन
है कपट यह विकट समय का
रुला रहा जो हँसता जीवन
तिनके बिखरा देता पल में
नीड़ बिना कर देता जीवन
शुष्क पर्ण-सा उड़ता फिरता
यह कूड़ा कर्कट-सा जीवन।
138
आँसू लाना बहुत सरल है
ऐसा सोच रहा था जीवन
बहते आँसू थाम सकेगा
ऐसा समझ रहा था जीवन
पर जब आँसू आँखों आये
थाम सका ना मेरा जीवन
आँसू की अर्थी आँसू है
समझ सका ना मेरा जीवन।
139
जाने कितने दुख की तह में
दफन पड़ा है मेरा जीवन
खोदो तो अवशेष मिलेंगे
पर न मिलेगा पूरा जीवन
जख्म भरी पीड़ा की कतरन
अवशेषों पर अंकित होगी
शायद इन अवशेषों में है
पीड़ा का ही अपना जीवन।
140
हल्के झोंके में जो बिखरे
वह नाजुक है मेरा जीवन
झंझावात प्रबल पीड़ा का
क्यँूकर कैसे सहता जीवन
हल्की-सी आहट पीड़ा की
थर्रा जाती मेरा जीवन
टूटी-सी है डाली वह भी
जिस पर खिलता मेरा जीवन।
141
जीते जी ना समझा मानव
क्या होता है उसका जीवन
मरने पर कुछ जान सका है
क्या था, कैसा उसका जीवन
लाख जियेंगे, लाख मरेंगे
दोष मृत्यु को देंगे सब जन
किन्तु मृत्यु के कारण केवल
नहीं निरर्थक बनता जीवन।
142
आँसू की दो धार बही तो
कितना भारी लगता जीवन
पर पीड़ा की लहरें कहती
आँसू ही है सच्चा जीवन
आँसू से ही दुआ माँगता
आँसू का मतवाला जीवन
गंगा जमुना कर आँखों को
निर्मल उज्जवल बनता जीवन।
143
भूत- भविष्य जहाँ मिलते हैं
वर्तमान-सा बनता जीवन
सपने सच्चे कर जाने को
झूठी बातें करता जीवन
वर्तमान का अर्थ यही है
झूठा भी सच्चा कर लेना
बिगड़े भाग्य बना लेना भी
अपने हाथों रखता जीवन।
144
‘सोम’ समझकर आँसू पीता
सीख चुका है मेरा जीवन
भर प्याली करुणा के कण से
मुझे पिलाता मेरा जीवन
जब पीड़ा के पागलपन में
हाहाकार मचा देता हूँ
तब सिरहाने बैठा मेरे
आँसू खूब बहाता जीवन।
145
रंगमंच पर लंबी छाया
फेंक रहा क्यूँ अपना जीवन
व्यर्थ भूमिका रचा रहा क्यूँ
समय लुटाता सबका जीवन
चर्चा होगी जब जब जग में
खूब हँसेगी दुनिया सारी
कुंठा के तब अंधकूप में
छिपने आतुर होगा जीवन।
146
लेकर अश्क अनाथ नयन में
ढूँढ रहा है मेरा जीवन
हर नम पलकें छूकर मानो
पूछ रहा है मेरा जीवन
है यह आँसू किन आँखों का
है यह मोती किन नयनों का
पर अनाथ का पालनकर्ता
ढँूढ नहीं है पाता जीवन।
147
दग्ध हृदय की पंखुड़ियों पर
आँसू का कुछ बनता जीवन
पलक-रोम पर बूँदें दुख की
बन जाती आँसू का जीवन
और ढुलक कर नयनों से नित
कह जाती बातें जीवन की
आँसू दुख सहने का आदी
आँसू से बल पाता जीवन।
148
मुझे देखकर तू रोये यह
नहीं चाहता मेरा जीवन
भार सदा तेरे आँसू का
अपनी आँखों रखता जीवन
जो कुछ मैं हूँ , जो कुछ मेरा
है सब तेरे दुख का मेला
मैं-तू का ही भेद मिटाने
पीड़ा में नित रहता जीवन।
149
आज बिखर जायेगा भू पर
आँसू बनकर मेरा जीवन
हर नयनों में पीड़ा होगी
नश्वर पाकर मेरा जीवन
आँचल जिसका गीला होेगा
उसकी ही गोदी में छिपकर
रोते-रोते सिसक सिसक कर
प्राणों को तज देगा जीवन।
150
लौट रहीं जो नावें तट पर
ला न सकीं हैं मेरा जीवन
माना मेरी नाव किनारे
छोड़ चुकी है मेरा जीवन
पर जिन नावों पर आँधी है
उनकी ही जर जर गोदी में
जाने कब ही डूब चुका है
टुकड़ा टुकड़ा मेरा जीवन।
151
जो कुछ पाया वह खोना है
संग क्षणिक ही रहता जीवन
संगी साथी हर मौसम के
अलग-थलग कर जाता जीवन
एक चला जो संग हमारे
जाने कब गुम हो जावेगा
आती जाती साँसों का भी
हाल यही है पाता जीवन।
152
काल घटा घनघोर घनी है
कैसे इससे बचता जीवन
ओढ़ कफन जब मौत खड़ी हो
साँसें रोके रखता जीवन
पर महँगा है धोका देना
बहुत सहज है धोका खाना
क्रूर काल ही खींच कफन को
जिंदा दफना देता जीवन।
153
पीड़ा ही अंतिम पड़ाव है
ऐसा सोच रहा था जीवन
आगे इसके मार्ग नहीं है
आँसू से कहता था जीवन
पर आँखों में आँसू भरकर
साँसों में कुछ पीड़ा भरकर
जाने किसके पदचिन्हों से
उलझ रहा था मेरा जीवन।
154
पीड़ा के प्याले में आँसू
पीता जाता मेरा जीवन
व्यर्थ पिपासा अपने मन की
चिन्ता में ढल लेता जीवन
जीवन में कुछ अवसर आते
प्यासे अपना आँसू पीते
फिर क्यूँ अपनी प्यास बुझाने
माँग रहे सब मेरा जीवन।
155
नम पलकों के कोने बैठा
बीत चला है मेरा जीवन
देख रहा है हर आँसू में
अपनी सूरत मेरा जीवन
कुछ आँसू में ढुलक चला है
कुछ आँसू में दमक रहा है
आँसू-आँसू साँसों के संग
गिनती गिनता मेरा जीवन।
156
जन्म-मरण का अनुभव पाने
पल पल जीता मरता जीवन
टूटी-सी साँसों के पथ पर
कंपित कदम बढ़ाता जीवन
ठेस लगी तो पथ पर घायल
साँसों की लाशों पर बैठा
मरने के पहले मरने की
बाट जोहता रहता जीवन।
157
दिन ढलते ही रात बना है
जल्दी जल्दी चलता जीवन
सोच रही थीं साँसें सारी
मंजिल से क्यूँ डरता जीवन
यह मंजिल भी क्या मंजिल है
बोल उठा तब मेरा जीवन
मंजिल तो इक मृत्यु-द्वार है
समझ गया था मेरा जीवन।
158
कलियाँ खिलती, फूल बिखरते
काँटों में बिंध पलता जीवन
गाती चिड़िया मूक गगन में
खामोशी बना रहता जीवन
भिन्न दुखों में, भिन्न सुखों में
अनुभव सारे भिन्न मिले हैं
जाने कितने अनुभव पाकर
योग्य मरण के बनता जीवन।
159
मधु पराग तेरे वसंत का
चाह रहा था मेरा जीवन
पर पतझर के शुष्क पर्ण-सा
सूखी डालों पे था जीवन
टूट टूट कर पीतवर्ण-सी
साँसों का अंबार लगा था
ठूँठ प्राण को फिर भी मेरे
छोड़ नहीं पाता था जीवन।
160
फुटपाथों पर तड़प रहा था
जाने कब से मेरा जीवन
सभी भिखारी वस्त्र ढ़ँके थे
नग्न पड़ा था मेरा जीवन
भीड़ साँस की वहाँ जमी थी
लाश किसी की ठिठूर रही थी
पर साँसों की भीड़ छटी तो
दिखा लाश सा मेरा जीवन।
161
प्रतिपल धुँधला पड़ने वाला
चित्र सुनहला होता जीवन
सतरंगी तूली के मुख से
झरझर झरना बनता जीवन
टूटी टूटी रेखायें ही
खींच रही टूटी साँसें भी
सिमट रहा है जिसके अन्दर
कुछ धुँधला-सा मेरा जीवन।
162
मिला मृत्यू का एक मुखौटा
जो जग में कहलाता जीवन
पहन इसे ही नाटक करता
खुद पे बस इतराता जीवन
दर्प गर्व के इस कारण ही
भूत प्रेत-सा लगता जीवन
मरने के पहले मरता है
अहं भरा हो जिसका जीवन।
163
क्षणभंगुर काया के अन्दर
मन से उलझा रहता जीवन
मन में है माया का मधुरस
जिसमें रमता अंधा जीवन
चिंतन चंचल हो उठता है
चित्त चपल जब हो जाता है
चिन्ता की आँधी में देखो
बिखरा बिखरा दिखता जीवन।
164
इस धरती पर कब्र नहीं जो
दफना सकती मेरा जीवन
नहीं चिता वो कहीं धधकती
भस्म बना दे मेरा जीवन
मैने तो मरने के पहले
तन, मन, धन सब त्याग दिया है
और प्राण यह पहले से ही
त्याग चुका है मेरा जीवन।
165
कहते हैं मर जाने पर भी
जीवित ही है रहता जीवन
साँसें ना हों, यादें ना हों
जीवित इनसे रहता जीवन
कर्म हमारे अच्छे अच्छे
यादों को हरपल पनपाते
अच्छी बातें याद रूप में
करती जाती जिन्दा जीवन।
166
जिनको जीना हम कहते हैं
वह है एक मृत्यु का जीवन
काँधे चढ़कर, घुटने चलकर
दौड़-धूप जो करता जीवन
वह सब स्वाँग मृत्यु ही रचती
हमें खींच कर वह ले जाती
अंतिम डग जो नहीं उठे तो
ठठरी पा ही जाता जीवन।
167
मृत्यृ अगर गूँगी ना होती
बातें उससे करता जीवन
साँसों की भी भाषा होती
आँसू से कुछ कहता जीवन
मृत्यु अगर आने के पहले
आने की ही बात बता दे
तो आँसू की माला पहना
स्वागत उसका करता जीवन।
168
जब जीवन पर चर्चा होगी
चर्चित होगा मेरा जीवन
लोग करेंगे जैसी बातें
वैसा होगा मेरा जीवन
धरम करम की बातें होंगी
पापी के पापों की चर्चा
हर परिभाषा उल्टी पाकर
कुंठित होगा मेरा जीवन।
169
स्वप्न मृत्यु का देख रहा हॅू
जब से मैंने पाया जीवन
हर साँसें जो टूटी बिखरी
गँुथती जाती मेरा जीवन
पास मृत्यु के ले जाती हैं
इस जीवन को जीवन देकर
साँसें गिरती, गिरकर जीती
यह अनुभव ही करता जीवन।
170
संग काल के कब्र-कफन हो
कोशिश क्या कर सकता जीवन
फूलों-सा खिलने के पहले
काँटों में बिंध रहता जीवन
साँसों की हर किश्ती में तो
मृत्यु नजर आती है बैठी
कोशिश लाखों करने पर भी
नहीं किनारा पाता जीवन।
171
सभी जानते बिना बताये
रुक जाता है चलता जीवन
पर अज्ञानी मानव बनकर
पागल-सा है जीता जीवन
जीवन भर वह सब कुछ करता
जो जो उसको ना करना था
कब रुक कर साँसें तजना है
नहीं किसी से कहता जीवन।
172
मरने पर सब निर्धन जन भी
खो जाते हैं अपना जीवन
सिंहासन पर बैठा राजा
आज नहीं कल खोता जीवन
जलती सबकी चिता यहॉ पर
या नींद कब्र की पाते हैं
मृत्यु कभी कुछ भेद न रखती
रचती एक सरीखा जीवन।
173
जन्म-मरण के इस नाटक में
एक द्रश्य-सा होता जीवन
सुख दुख की इस लीला का ही
मात्र मंच-सा रहता जीवन
जो जन्में हैं दुख के खातिर
जीवन भर बस दुख ही पाते
पल भर का सुख आने पर भी
भ्रमित ठगा-सा रहता जीवन।
174
विचित्र चित्र-सी मृत्यु होती
जिसे बनाये जाता जीवन
हर रेखा आशा की मिटती
रंग क्लेश का भरता जीवन
इन रंगों से खिलता जाता
पीड़ा का हर चिंतित चेहरा
इस कारण ही अंत समय में
मृत्यु-रूप हो जाता जीवन।
175
साँसें हैं बाती जीवन की
दीप सरीखा जलता जीवन
इससे ही तो रोशन होता
मन को रोशन करता जीवन
पर जब इसकी ज्योति दमकती
आती आँधी विकट रूप में
भस्म हुआ जाता खुद जलकर
बुझते बुझते सारा जीवन।
176
पूछ रहे हैं पथ के पत्थर
क्यूँ न गिरा यह मेरा जीवन
ठोकर खाकर गिर जाता तो
हिम्मत ले फिर बढ़ता जीवन
‘हम पत्थर हैं, हमको क्या है
ठोकर खाने यहीं पड़े हैं
‘पर जो ठोकर हम देते हैं
उस अनुभव से बनता जीवन।’
177
पनप रहा है हर पल देखो
हर पल का छोटा-सा जीवन
हर पल में कुछ होती आशा
जिससे बनता जाता जीवन
हर पल जब ज्यौं मरता जाता
गर्व मृत्यु का बढ़ता जाता
और निकट वह पल भी आता
जो विलीन कर देता जीवन।
178
मन की बातें मन ही समझे
मन को समझे किसका जीवन
मन ही सब कर्ता-धर्ता है
ज्ञान उसी से पाता जीवन
करते जो जन मनन लगन से
सहज सफल वे हो जाते हैं
पर मन जिसका भटका रहता
रहता उसका उलझा जीवन।
179
तन उज्वल, मन निश्चल कर दे
वही साघना करता जीवन
धो डाले जो जमी धूल को
वही प्रार्थना करता जीवन
धर्म वही जो निर्मल कर दे
तन मन को जो शीतल कर दे
करे प्रकाशित हर कोने को
वही ज्योत फैलाता जीवन।
180
कितना भी मन कुरूप हो पर
उसका होता अपना जीवन
छा जाता है कर्म धर्म पर
जिससे कलुषित होता जीवन
हर मानव मन की करता है
नहीं जरा भी वह डरता है
सारे कर्म कुकर्म बने पर
टस से मस ना होता जीवन।
181
आती जाती साँसों का ही
ताना बाना होता जीवन
हर साँसें जब आहें बनती
समझ नहीं कुछ पाता जीवन
है आहों की तड़प गजब की
जिससे साँसें ऐंठी जाती
साँसों के टूटे धागों से
कफन नहीं बुन पाता जीवन।
182
छिपा रहा है अपना चहरा
मरने पर भी अपना जीवन
जाने क्यूँकर कफन ओढ़कर
खुद को घृणित समझता जीवन
जीवन भर तो सबके आगे
फन उठाये रहा दबंग-सा
अब पछतावा जहर सरीखा
अपने रग में पाता जीवन।
183
पाता है जीने का भय भी
डरा मृत्यु से मेरा जीवन
डर है डर जाने का इसको
निडर नहीं बन पाता जीवन
हर क्षण अगले क्षण से डरता
डर कर और डर-सा लगता
डरा डरा-सा मैं भी सोचूँ
यह जीवन है कैसा जीवन।
184
चाहे जितना कुछ भी कर लो
अस्थिकलश-सा रहता जीवन
माटी को माटी में मिलना
यह परिभाषित करता जीवन
साँसें हैं बस धूल उड़ाती
सफर गजब है धूल भरा-सा
आँसू जिसको गीला करता
उस माटी से बनता जीवन।
185
बने घरोंदे छोड़ किनारे
रूठ चला था मेरा जीवन
कौन मनाये, कौन बुलावे
कहना माने किसका जीवन
बोल उठी तब फेनिल लहरें
यह बच्चों-सा अभिनय छोड़ो
‘कहीं नहीं है कोई तेरा
नाहक रूठा तेरा जीवन।’
186
साँझ सुनहरी समझ गई है
अंत हुआ है दिन का जीवन
किरणें सारी सिमट चली हैं
छोड़ शिथिल-सा मेरा जीवन
अंत समय फिर भी चाहे है
कुछ किरणें साँसें बन जायें
इन किरणों से दीप जले तो
कुछ औ जी ले मेरा जीवन।
187
मैं क्या हूँ , क्या कर सकता हूँ
मुझे बताता मेरा जीवन
जग चाहे जो समझे मुझको
पर मेरा है अपना जीवन
इसमें खुशबू मेरी ही है
रंग कर्म का मेरा ही है
गैर नहीं मैं अपने से हूँ
गैर नहीं है मेरा जीवन।
188
मंदिर तेरा, प्रतिमा तेरी
मेरे भीतर तेरा जीवन
गीत तुम्हारे, छंद तुम्हारे
मेरे भीतर गाता जीवन
शीश झुकाने फिर भी मुझको
तेरे सम्मुख जाना होगा
इस कारण ही छोड़ चला हूँ
इस जग में यह प्यारा जीवन।
189
दुर्दिन में भी गाया करता
नत-मस्तक हो मेरा जीवन
विस्मृत कर वे दुख क्षण सारे
मुस्कानें भर लाता जीवन
इच्छा सारी सीमा में रख
चिर अभाव का मधु पीता हूँ
फिर भी सुलझ न पाते दिन वो
जिनमें उलझा रहता जीवन।
190
मादक मदिरा पीड़ा की है
बिना झिझक के पीता जीवन
कफन हाथ में ले कर चलता
प्राणहीन-सा अपना जीवन
क्षणिक जवानी, पल का बचपन
वृद्ध हुआ दो दिन में जीवन
फिर भी पीड़ा की प्याली से
छलक रहा मदिरा-सा जीवन।
191
बच्चों के से अभिनय से ही
बीत सका है मेरा जीवन
हर क्षण तो सौभाग्यहीन था
कैसे कटता अपना जीवन
पुण्य किया, पापों में डूबा
सुख से वंचित, दुख से ऊबा
पर किलकारी मुक्त कंठ की
बना रही थी मेरा जीवन।
192
यौवन वय में डरा डरा-सा
प्रेम समर्पित करता जीवन
कुछ प्रसन्न-सा, कुछ पछताता
सुख दुख सब सम करता जीवन
आशीष मिले सब क्षण ऐसे
जैसे तीक्ष्ण तिक्त कटु प्याले
हुई वेदना, दबी चेतना
स्नेह शून्य-सा पाया जीवन।
193
जन्म-मरण के द्वार द्वार पे
भीख माँगता फिरता जीवन
एक कटोरा खाली पाकर
लौट रहा है मेरा जीवन
जिसने पाये हीरे मोती
था वह भूखा प्यासा जीवन
मिला अन्न भी उस भूखे को
मृत्यु द्वार जो पहॅुचा जीवन।
194
राह शून्य थी, पार खड़ा था
गुनहगार बन मेरा जीवन
चहूँ ओर था घना अँधेरा
अंधकार में डूबा जीवन
पर जीवन कुछ अपने भीतर
अपनेपन को ढूँढ रहा था
नहीं मिला जब मैं ही अन्दर
एक साँस में बिखरा जीवन।
195
विमल बिन्दु तेरे प्रकाश का
खोज रहा है मेरा जीवन
अगम सिन्धु बन कलंक रूप का
कलुषित होता जाता जीवन
नैराश्य भाव की छाया में
जीवन में जब तम गहराता
नीड़ छोड़ जब उड़े पखेरू
त्यक्त नीड़-सा लगता जीवन।
196
कितना भारी श्राप मिला है
थाह नहीं ले पाता जीवन
मृगतृष्णा की जंजीरों से
बँधा बँधा-सा रहता जीवन
बड़ा शान से सिंहासन पर
मृत्यु संग ही बैठा रहता
मृत्यु का ही किरीट कटीला
हरदम माथे रखता जीवन।
197
संघर्षों की सी आँधी में
मृत्यु-मीत ही बनता जीवन
देख विराट रूप आँधी का
धैर्य सभी खो जाता जीवन
बिजली की निष्ठुर आभा में
दिखता है तटहीन समुन्दर
तेरे हाथों दे नैया पर
क्यूँ न समर्पित होता जीवन।
198
कितनी सारी पीड़ा पाता
नित संघर्षों वाला जीवन
नन्हीं नन्हीं उलझन को भी
पल में परलव करता जीवन
छोटी छोटी बातों को भी
तिल का ताड़ बनाता जीवन
इक छोटी-सी आँधी को भी
अंत समझ मिट जाता जीवन।
199
अनंत पथ पर अंत स्वयं का
देख नहीं है पाता जीवन
एक अकेला मृत्यु-द्वार से
सहसा टकरा जाता जीवन
क्या है मृत्यु तभी अचानक
उठता है यह प्रश्न भयानक
पर कुछ सोचूँ इसके पहले
मृत्यु-रूप ले लेता जीवन।
200
धुले हुये हैं जो आँसू से
उन अक्षर से लिखता जीवन
छंदबद्ध कर हर पीड़ा को
अपने गीत सजाता जीवन
पर जीवन की दुखिया साँसें
नीरव क्रंदन भर जाती हैं
इस कारण टूटी वीणा पे
गीत करुण बन जाता जीवन।
201
मन में है माया का मधुबन
हरदम जिसमें खिलता जीवन
इस माया की महिमा न्यारी
इसके वश में रहता जीवन
इससे चिंतन चपल हुआ है
मन चंचल अति बना हुआ है
माया का आलिंगन चुम्बन
मधुर मधुर नित पाता जीवन।
202
चाह नहीं मैं अहं जताने
पाऊँ ऊँचे पद का जीवन
चाह नहीं मनमानी करने
पा जाऊँ इठलाता जीवन
जिसमें हों बस साँसें अपनी
चा हूँ वह अपना-सा जीवन
मन में हो विश्वास प्रबल-सा
धरम करम में पलता जीवन।
203
लगता है बस भँवर फँसा-सा
समय-चक्र में पिसता जीवन
जाने क्या गति होगी इसकी
क्या से क्या ये होगा जीवन
मेरी गति इति तू ही तो है
फिर क्यूँ इस गति पर रोता है
मैं तो झेल रहा हूँ सुख से
अपनी पीड़ा, अपना जीवन।
204
साँस बहुत है, आस बहुत है
फिर क्यूँ तन ये तजता जीवन
होनी निश्चित अटल सबल है
टाल इसे ना सकता जीवन
काल प्रबल नित रहता जग में
हर क्षण रखता अपने वश में
यत्न, बचाने के निष्फल कर
ले जाता है सबका जीवन।
205
जिन गीतों को रचना चा हूँ
वही गीत ना बनता जीवन
छंद हीन है, लय विहीन है
अर्थ हीन है मेरा जीवन
टूटी बिखरी साँसों में ही
शब्द चयन कर पाता जीवन
अंतिम साँसों की पंक्ति में
गीत अधूरा बनता जीवन।
206
मृत्यु पथिक बन साथ चली है
लगता इक पड़ाव-सा जीवन
जितने आये चले गये सब
काँधों लेकर अपना जीवन
नहीं हुआ आघात किसी को
जो जब चाहे चले गये हैं
एक पालकी रही अकेली
लिये चला है मेरा जीवन।
207
प्राण कहाँ करते हैं विचरण
यह सोच रहा था जीवन
देह त्याग कर पार गया तो
कैसा होगा उसका जीवन
है जीवन इक कलश सरीखा
दरका तो बस शव कहलाया
यह शव भी है कलश सरीखा
मर कर जिसमें रहता जीवन।
208
अस्ताचल की पालकी कंचन
निज काँधों पर रखता जीवन
क्षितिज रेख पर खड़े प्राण से
बिदा माँगने जाता जीवन
पर अनंत में ब्रम्ह शून्य है
यही देख थम जाता जीवन
ढल जाती है शाम थमी-सी
आँख मूँद रह जाता जीवन।
209
प्राणों को अपनी साँसों में
पाल रहा है मेरा जीवन
और प्रेरणा भाव, बुद्धि की
शक्ति प्राण को देता जीवन
रूप, रस, गंध, स्पर्श, स्वर सब
खुलते हैं जब पंख प्राण के
उड़ कर प्राण चले जाते हैं
रह जाता बस शव-सा जीवन।
210
चंचल चिड़िया चहक रही थी
देख नीड़-सा मेरा जीवन
तिनके तिनके छूकर कहती
‘है उपहार अनोखा जीवन’
मैंने सोचा कितनी अच्छी
चहल-पहल पंखों की होगी
पंछी था पर वो प्राणों-सा
इक उड़ान ही जिसका जीवन।
211
देह त्याग जब प्राण उड़े तो
हक अपने सब हारा जीवन
सब तन, मन, धन रहा यहीं पर
साथ न कुछ रख पाया जीवन
नीड़ सलौने, डाली अपनी
छत छप्पर सब छूट गये हैं
अश्कों के कतरों की कतरन
साथ नहीं रख पाया जीवन।
212
एक अकेला चलता रहता
अपने पथ पर मेरा जीवन
संगी साथी भी क्या जानें
किस पथ चलता मेरा जीवन
पूछ रहे हैं रक्षक-भक्षक सब
देखो, रोको, जाने मत दो
‘नहीं रुकेगा जाने वाला‘
चलते चलते कहता जीवन
213
अपना अंतिम गीत सुना कर
मूक हुआ है मेरा जीवन
सुर अनंत के दूर हटे हैं
शब्द विहीन है मेरा जीवन
जाने कितना गा सकता था
टूटे तारों की वीणा पर
पर रख वीणा तेरे चरणों
मुक्त हुआ है मेरा जीवन।
214
पंख पसारे उडत़ा जावे
दूर गगन में मेरा जीवन
शुभाशीष यह देते जावे
जाते जाते मेरा जीवन
नम पलकों से अब मत देखो
दिख न सक्रेगा मेरा जीवन
देख सको तो खुद को देखे
तुम में ही है मेरा जीवन।
215
चिता जलाकर, राख बहाकर
मिटा दिया है मेरा जीवन
यादों की कतरन में देखो
भुला दिया है मेरा जीवन
नहीं कहीं है खाली आसन
नहीं जरा भी कोई आहत
जगमग जगमग जग जीवन में
नहीं कहीं है मेरा जीवन।
216
याद करोगे जब भी दो पल
उभर उठेगा मेरा जीवन
याद आवेगा मेरा तुमको
गीली आँखों वाला जीवन
पीड़ा मेरी याद बनेगी
आँसू बनकर खूब बहेगी
आँसू से नम राख मिलेगी
जब ढूँढोगे मेरा जीवन।
00000
टूटी वीणा की सांसों पे
ReplyDeleteसुर को साधे मेरा जीवन
रूंधे कंठ की कोमलता को
सुर की समता देता जीवन
-बहुत सुन्दर भाव!!