Friday, July 1, 2011

Bhupendra Kumar Dave on Pyramid and Pranayam

पिरामिड और प्राणायम

प्राचीन मिश्र के लोगों की मान्यता थी कि मृत्यु के बाद भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है और मृत्यु के बाद जब तक शरीर को सुरक्षित रखा जावे तब तक आत्मा भी सुरक्षित रहती है। वे राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे और इसलिये उन्होंने उनके शव को सुरक्षित रखने पिरामिड बनवाये।
अतः पिरामिड में शवों को सुरक्षित रखने की चमत्कारी शक्तियों के प्रति उत्सुकता का जागना स्वाभाविक हुआ। विशेषकर उस समय से जब एक कुत्ता पिरामिड में चला गया और वहीं रहता कालान्तर मर गया। आश्चर्य की सीमा ही न रही जब लोगों ने देखा कि कुत्ते के शव से अंश भर भी सडांध नहीं आ रही थी।
फलतः पिरामिड पर अनुसंधान किये जाने लगे। एक परिक्षण में पाया गया कि पिरामिड के आकार में रखी खाद्य सामग्री संरक्षित व स्वादिष्ट बनी रहती है। एक और प्रयोग कुत्ते को पिरामिड के आकार के घर में रखकर किया गया और यह पाया गया कि कुत्ता वहाँ रहकर ज्यादा समझदार, आज्ञाकारी व स्वस्थ बना। इन प्रयोगों से ‘पिरामिड के पॉवर’ पर विश्वास जागृत हो गया। चीन में अस्पतालों को पिरामिड की आकृति दी जाने लगी। वैज्ञानिकों ने माना कि इन
























पिरामिडों को धरती के अंदर की इलेक्ट्रोमेग्नेटिक तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता होती है, जिसे वे अपनी चोटी के सहारे उसे ऊर्जा के रूप में दुबारा प्रवाहित करते हैं परन्तु इसके लिये पिरामिडों का उचित निर्माण होना आवश्यक है। उसका आकार ऐसा होना चाहिये कि उसकी चोटी पर दैविक या प्राकृतिक शक्तियाँ आकर इकठ्ठी हो जाती हों और वहाँ से समतल रूप में सब दीवारों पर से होती हुई पृथ्वी तक पहुँच जाती हों।
प्रयोग के तौर पर बैंगलोर निवासी अमरीकी सोफिया टेनब्रक ने प्लाईवुड का पिरामिड बनाकर उसमें सप्ताह में चार बार स्वयं बैठकर अपने आप को ज्यादा तरोताजा व स्वस्थ महसूस किया। प्रयोगों ने यह भी सिद्ध किया कि बुआई के पहले यदि बीजों को पिरामिडनुमा बक्से में रख दिया जाय तो वे ज्यादा अच्छी तरह अंकुरित होते हैं। पौधों को भी अगर पिरामिड में रखा जाय तो उनके विकास में सुधार होता है। सिरदर्द, पक्षाघात व हृदय रोगों में पिरामिड आकार के कमरों में बैठने से आश्चर्यजनक लाभ मिलता है। वैज्ञानिकों का मत है कि यदि दूषित जल को पिरामिड में रख दिया जाय तो वह बिना उबाले ही शुद्ध हो जाता है।
पिरामिड में बैठने से दर्द से मुक्ति मिलती है, नशे की आदत से छुटकारा मिलता है, तनाव से भी हटा जा सकता है। कारण कुछ भी हो, पर इतना अवश्य प्रमाणित हुआ है कि पिरामिड चमत्कारिक प्रभाव दिखाते हैं।
योग विद्या ने भी मानव शरीर को पिरामिड में रखने के लिये पद्मासन की कल्पना की।


प्राणायम के समय भी इसी मुद्रा में आकर शरीर को पिरामिड में रखा जाता है।




वास्तव में इन मुद्राओं में शरीर सामने से त्रिकोणाकृति का दिखता है, किन्तु यदि मानव शरीर की औरा (aura) को भी इस मुद्रा पर उकेरा जावे तो एक पिरामिड बन जाता है और शरीर के साथ आत्मा भी इस पिरामिड के अंदर आ जाती है।



मिश्र के पिरामिडों में मृत्यु के बाद आत्मा विहीन शरीर को ही पिरामिड में रखा गया है, जबकि उपरोक्त मुद्राओं में सशरीर आत्मा को मनुष्य को ईश्वर द्वारा दी गई दैविक शक्तिओं के प्रकाशपुंज से बने पिरामिड के अंदर रखा जाता है। इससे कुंडलिनियों को जागरण की शक्ति मिलती है, शरीर इन जाग्रत कुंडलिनियों के तेज को वहन करने योग्य हो जाता है तथा आत्मा दैविक प्रभामंडल में विचरण का आनंद करती हुई ईश्वर के सानिध्य का अनुभव करती है।
हम यह भी अनुभव करते है कि गुम्बद के नीचे हरइक आवाज प्रतिध्वनित होकर लगभग ‘ओम्’ ध्वनि उत्पन्न करती है। यदि गुम्बद की जगह त्रृटिहीन संपूर्ण गोले की कल्पना की जावे तो हरइक आवाज ‘ओम्’ ही होगी। यह प्रतिध्वनि शनैः शनैः क्षीण होती जावेगी। किन्तु यदि केन्द्र में एक निश्चित अंतराल में ‘ओम्’ ध्वनि उत्पन्न की जावे तो ‘ओम्’ ध्वनि का ह्रास नहीं होगा बल्कि ‘ओम्’ ध्वनि वैकल्पिक रूप से गोले की त्रिज्या के बराबर की दूरी शून्य समय में पूरी करती हुई केन्द्र में प्रतिध्वनित होती प्रतीत होगी। इस तरह ध्वनि की वैकल्पिक गति बढ़कर प्रकाश की तरंग-गति को प्राप्त करेगी, जिससे संपूर्ण गोला प्रकाशित होता प्रतीत होने लगेगा। पिरामिड के अंदर भी प्रतिध्वनित आवाज यही ध्वनि उत्पन्न करती है, इसलिये पद्मासन मुद्रा में ‘ओम्’ ध्वनि उत्पन्न करने का संतों ने कहा है। इस योग से आत्मा सशरीर दैविक प्रकाश का अनुभव करती है और मस्तिष्क ज्ञान की परमसीमा को प्राप्त करता है, जिसे ब्रम्हज्ञान कहा गया है।
यहाँ यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि पिरामिड में अगर सही दिशा में नहीं बैठा जावे तो उसके दुश्परिणाम होते हैं। यही कारण है कि मिश्र के पिरामिडों के अंदर जानेवालों को प्रायः मृत्यु का आलिंगन करने मजबूर होना पड़ा।
इससे स्पष्ट होता है कि कुविचारों से ग्रस्त अवस्था में स्वयं के औरा के पिरामिड में याने पद्मासन में बैठकर मनन करना हानिकारक होता है। दूसरों के चरणस्पर्श के समय हम अपने आप को उसके औरा के पिरामिड के अंदर समर्पित करते हैं। अतः हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि जिसके चरणस्पर्श हम करना चाहते हैं उसकी औरा दूषित तो नहीं है। दुर्जनों के पैर छूना इसलिये हिन्दुओं में वर्जित है। औरा के प्रभाव को समझने के लिये हम देखें कि रोता हुआ बच्चा किस तरह माँ या नानी की गोद पाकर एकदम शान्त हो जाता है और मुस्कुराने लगता है। वहीं हँसता-खेलता बच्चा ऐरेगेरे की गोद में जाकर अचानक चीखने और तिलमिलाने लगता है, क्योंकि वहाँ वह बेमेल औरा द्वारा निर्मित पिरामिड के अंदर आ जाता है।
यह भी कहा गया है कि पिरामिडों को उस स्थान पर बनाना चाहिये जहाँ चुम्बकीय या विद्युतीय क्षेत्र न हो। संतों ने इसलिये योग के लिये एकांत स्थल के चयन की बात की है। घर के अंदर पूजास्थल पर पद्मासन कर मनन करना उचित माना गया है क्योंकि वहाँ संस्कारवश प्रायः सभी का मन मलीनता खो बैठता है। घर में पूजागृह किसी तीर्थस्थल से कम नहीं होता।
अंत में यह कहा जा सकता है कि जिसतरह पिरामिड विश्व के महान आश्चर्य में से एक है, शायद उसी तरह योगविद्या विश्व की महान सोच में से एक है।


00000