Sunday, September 12, 2010

Bhupendra Kumar Dave ki laghu kathayain

शैतान की उद्दंडता
ईश्वर को अपमानित करने शैतान ने ईश्वर की मूर्ति बनवाकर नरक के द्वार पर रखवा दी । जब यह बात ईश्वर को पता चली तो वे मुस्कुरा उठे और शैतान के पास सन्देश भेजा, "हे शैतान, मेरे प्रति तुम्हारी श्रद्धा से मैं अविभूत हो उठा हूँ । तुमने तो मेरी पत्थर की मूर्ति तक को नरक में ढकेले जाने से बचा लिया । तुम्हें अनेक धन्यवाद ।"
यह सन्देश पाकर शैतान अत्यंत शर्मिंदा हो उठा ।

शैतान की शक्ति परीक्षा

नित नयी शक्ति पाने के कारण शैतान का अहं सातवें आसमान को छूने लगा और उसने ईश्वर को ललकारा , 'ऐ ईश्वर ! अब मैं तेरे से ज्यादा शक्तिमान हो गया हूँ , इसलिए अब तूने स्वर्ग की सत्ता मुझे सोंप देनी चाहिए ।'
शैतान की इस ललकार को सुन ईश्वर मुस्कुराने लगे और बोले, 'मैं स्वर्ग की सत्ता तुझे सोंप दूँ ,इसके पहले , हे शैतान, बता की तेरे सर्वशक्तिमान होने का प्रमाण क्या है ?'
यह सुन शैतान बौखला उठा और गरजकर बोला, 'हाथ कंगन को आरसी क्या? तुझे प्रमाण चाहिए तो बाहर आ। देख, वहां पृथ्वी पर तेरा एक भक्त अपने लक्ष्य की ओर जा रहा है । मैं यहीं बैठकर अपनी प्रभावशाली शक्तिओं से उसे अपना लक्ष्य प्राप्त करने नहीं दूंगा । चाहे तो तू भी अपना जोर अजमा ले
'ठीक है ,' ईश्वर ने कहा ।
शैतान ने तुरंत अपनी शक्तिओं को जागृत कर उस आदमी के पथ पर कांटे बिछा दिए। राह पर सर्वत्र बड़े बड़े पत्थरों का अम्बार लगा दिया। सड़क के दोनों किनारे लगे पेड़ धराशाही कर दिए। भयंकर जहरीले जीव जंतुओं को चप्पे चप्पे पर चौकसी करने तैनात कर दिया। मार्ग पर सब कहीं गर्म रेत बिछा दी। परन्तु अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता वह आदमी गिरता पड़ता आगे चलता रहा। उसके पैरों में जहाँ तहां कांटे बिंध गए। पत्थरों की ठोकरों से वह लहूलुहान हो गया। गर्म रेत में उसके तलुओं में फफोले पड़ गए। वह प्यास के कारण तड़प उठा। उसकी साँसें उखड़ने लगी। आखिरकार वह दम तोड़ता जमीं पर गिर पड़ा। यह देख शैतान खुश हो उठा और दौड़कर उसके पास आया। उस आदमी को मरनासन्न देख शैतान ने ईश्वर को आवाज लगायी , 'देख ले, ऐ ईश्वर, तेरा भक्त अंतिम साँसे ले रहा है। मेरी प्रभावी शक्तिओं ने उसे लक्ष्य प्राप्ति के पहले ही धराशाही कर दिया है । तुझे मेरी शक्तिओं के प्रभावशाली होने का प्रमाण चाहिए था, तो आ और स्वयं अपनी आँखों से देख। '
शैतान की आवाज सुन ईश्वर भी उस जगह आ गया, जहाँ उनका भक्त अंतिम साँसें गिनता पड़ा था। ईश्वर ने उसका सर उठाकर अपनी गोद में रख लिया और शैतान से कहा , 'तू अपनी शक्ति के अहं में खो गया और यह जानना भूल गया की मेरे इस भक्त का आखिर लक्ष्य क्या था। इसका लक्ष्य ईश्वर के दर्शन पाना था और अहं से लदे तुने ही मुझे यहाँ बुलाकर इसका लक्ष्य मृत्युपूर्व पूर्ण करा दिया। तेरी सारी शक्तियां निरर्थक साबित हुईं क्योंकि तूने शक्ति का उपयोग बिना बुद्धि के किया ।'
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ईश्वर के साथ का सफ़र

जन्म के समय ही ईश्वर ने कहा था कि वह हमेशा मेरे साथ रहेगा और सच में वह मेरे साथ चलता रहा । जिस राह पर मैं चल रहा था , वह बहुत कठिन था। राह पर जहाँ तहाँ पत्थर पड़े थे, काँटे बिछे थे और सिर पर चिलचिलाती धूप थी, छायादार पेड़ों का कहीं भी नामोनिशान नहीं था। ऐसे पथ पर ठोकर तो लगना ही थी, सो लगी और मैं गिर पड़ा। मुझे गिरा देखकर ईश्वर आगे नहीं बढ़ा और न ही उसने मुझे सहारा देकर उठाने कि चिंता जताई। मैं ही अपने प्रयास से उठ खड़ा हुआ। मेरे उठने के बाद वह फिर मेरे साथ चलने लगा। मैं इसी तरह कई बार गिरा और हर बार मुझे ही अपने बल पर उठना पड़ा। ईश्वर ने कभी भी मेरी मदद नहीं की। मुझे भी कोई शिकायत नहीं रही।
परन्तु मेरी ओर ध्यान देकर चलनेवाला ईश्वर स्वयं एक पत्थर से टकराकर गिर पड़ा। मैंने तुरंत आगे बढ़कर उसे उठाया।
यह देख ईश्वर ने मुझसे कहा, 'तुम्हारे गिरने पर मैंने तो कभी भी आगे बढ़कर तुम्हें नहीं उठाया। फिर भी मेरे गिरने पर तुम आगे बढे। मैंने तो सोचा की तुम इस समय मुझे छोड़कर अकेले आगे चल पड़ोगे। तुमने ऐसा क्यों नहीं किया? '
मैंने कहा, 'हे ईश्वर, तुमने मेरी मदद नहीं की वह तुम्हारी इच्छा थी। मैं स्वयं उठ सकता था, इसलिए हरबार उठता गया। मेरे उठने पर तुम पूर्ववत मेरे साथ चलने लगे। मेरे उठने तक तुम रुके रहे, यही मेरे लिए क्या कम था। ओर जहाँ तक तुम्हें उठने का प्रश्न है, वह मैंने इसलिए किया क्योंकि मुझे तो तुम्हारा साथ चाहिए था। सच कहूँ तो जब तुम मेरे साथ होते हो तो मेरी तुम्हारे प्रति आस्था बनी रहती है और उसी आस्था के बल पर मैं गिरने पर स्वयं ही उठने में सफल रहा हूँ। तुम्हारे साथ के बिना तो मैं एक कदम भी आगे नहीं रख पाऊंगा और अगर रख भी पाया तो मुझे संतोष नहीं मिलेगा। एक बच्चा सामने माँ को देखकर ही कदम आगे रखकर चलना सीखता है। परन्तु इसके लिए उसे सारी शक्ति सामने बैठी माँ से ही मिलती है।'
'पर बच्चे के गिरने पर माँ तो तुरंत आगे बढ़कर उसे उठती है। मैंने तो ऐसा कभी नहीं किया,' ईश्वर ने कहा।
मैंने कहा, '

यदि तुम ऐसा करते होते तो तुममें और माँ में फर्क ही क्या रह जाता।'
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2 comments:

  1. शैतान की शक्त परीक्षा ने मन मोह लिया. बहुत प्रेरणादायी रचना

    लगता है कि आपका ब्लॉग चिट्ठाजगत पर पंजीकृत नहीं है तो लोगों को इस बेहतरीन ब्लॉग की जानकारी नही हो पाती.

    आप चिन्ता न करें, मैं पंजीकरण करवा देता हूँ.

    http://www.chitthajagat.in/

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  2. आदरणीय दवे जी
    नमस्कार
    मैंने आप के द्वारा प्रविष्ठित दोनों "शैतान की शक्ति परीक्षा" एवं "ईश्वर के साथ का सफ़र" रचनाएं पढ़ें.
    दोनों में ही इश्वर के प्रति आस्था का भाव कूट-कूट कर भरा हुआ है
    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने.
    - विजय तिवारी " किसलय "
    हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर

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