
भूपेन्द्र कुमार दवे
1
हर प्याले में मेरा आँसू
बना हुआ था मधु हाला
‘ वाह वाह’ की गूँज उठी थी
खनक उठा था हर प्याला
दमक रहा था सब आँखों में
आँसू मेरा मोती-सा
चमक रही थी, चहक रही थी
मेरी अपनी मधुशाला।
2
दुख बरसे गर सावन-सा तो
भर लो अपना तुम प्याला
दहक उठे जब पीड़ा से मन
पी लो तुम आँसू हाला
सहनशक्ति की कमी मिटाने
इतना सा ही करना है
मुस्कानों से भरी हुई इक
बन जाना है मधुशाला।
3
जितना पी सकता उतना ही
आँसू मैंने पी डाला
फिर भी तू भरता जाता
पीड़ा से मेरा प्याला
छलक पड़ा जब यौवन मेरा
तूने दे दी नव हाला
जिसको पीकर देख रहा हूँ
सपनों में भी सुरबाला।
4
शब्दों में श्रृंगार विविध हैं
चुनकर गुँथने को माला
छन्दबद्ध पीड़ा भी बनती
चुभती कंटक सी माला
पर शब्दों की कलियाँ सुन्दर
महक उठाती हैं ऐसा
दिन में कविता, रात शायरी
बन जाती है मधुशाला।
5
दरक उठा था, टूट पड़ा था
मेरे हाथों में प्याला
अधरों में कंपन था जैसे
उफन रही हो विषहाला
कानों में झन्नाहट जागी
धड़कन भी कुछ तेज हुई
मेरी प्यास बुझाने तब यह
मचल उठी थी मधुशाला।
6
मैंने तो यह कभी न जाना
माँगो तो मिलती हाला
छीना छपटी करने पर ही
हाथों आता है प्याला
जो झगड़े वो दीवाने हैं
कहता हर पीनेवाला
मैं तो बस तरस दिखाकर ही
जीत सका हूँ मधुशाला।
7
मुझसे भी तू आगे निकला
तू जग में पीनेवाला
खोल रहा है ऐसी कितनी
हर घट में तू मधुशाला।
इस कारण तूने माटी का
मुझे बनाया है प्याला
जिसमें भर भर तू पीता है
मेरी पीड़ा की हाला।
८
कितना भी दुतकारो मुझको
पर मैं माँगूँगा हाला
ठुकराये गर मधुशाला तो
मैं ना ठुकराऊँ प्याला
सच कहता हूँ, कटुवचन से
कष्ट नहीं कुछ भी होता
पीनेवालों-सा आदी हूँ
गाली गर दे मधुशाला।
9
खुद को दफनानेवाला
काँधे पे जिसने लाश रखी
वह है सच जीनेवाला
आकर देखो इस दुनिया में
कफन अगर जो मिल जावे
मधुशाला वह खुली दिखेगी
बंद पड़ी जो मधुशाला।
कभी हलाहल बन जाती है
पीड़ा की चंचल हाला
जीवन भी जर-जर हो जाता
दरक उठे जब जब प्याला
मन भी काबू ना रह पाता
क्लेश जटिल जब हो जाता
पीड़ा से तब कह देता हूँ
आ बैठो तुम मधुशाला।
11
कभी हाथ से छूट गया तो
जाता टूट बिखर प्याला
और अधर सूखे रह जाते
ठुलक बहक जाती हाला
छूटे अधरों से प्याला तो
भाग्य बिगड़ ही जाता है
दे जाती तब दूजा प्याला
भाग्य बनाती मधुशाला।
12
जाना था मंदिर में मुझको
लेकर श्रद्धा का प्याला
पर जाने तू कहाँ गया था
छोड़ स्वयं की मधुशाला।
बढ़ा चला मैं जब कुछ आगे
पीछे से तूने टेरा
कहाँ चला है, तूने पूछा
लेकर प्यासी मधुशाला।
13
पीने और पिलानेवाले
भर जाते जब मधुशाला।
तब भी तुम खुद बाहर आकर
मुझे थमाते हो प्याला
तुममें है जितना अपनापन
उतना गर मुझमें होता
मैं भी खाली हाथ न आता
ना रखता गिरवी प्याला।
14
बैठ किनारे पी सकता था
अपनी किस्मत की हाला
लहरों से भी कह सकता था
मत ला सागर की हाला
नीली गहरी जहरीली-सी
लगती सागर की हाला
मैं तो मस्त रहा हूँ खुद में
बैठ किनारे मधुशाला।
15
बस इक पुण्य कमाने मैंने
कितने पापों को पाला
पाल पोसकर पापों को ही
बना हुआ हूँ मतवाला
अब भी गर कुछ पाप बचे हों
बतला दो वे सब मुझको
उनको भी मैं गुँथ डालूँगा
पुण्य समझकर ही आला।
16
मिलता है जब अवसर मुझको
पीता हूँ जी भर हाला
दुख की गठरी कोने में रख
पाता हूँ सुख का प्याला
चाहे विषधर साकी हो पर
गले लगाना पड़ता है
तब जाकर अच्छी लगती है
जीवन की यह मधुशाला।
कंटकमय पथ पर चलकर ही
मैंने पायी मधुशाला।
खून, पसीना, आँसू से ही
भर लाया मैं हर प्याला
पर मंजिल पर जाकर देखा
अंतिम साँसों के जरिये
उजड़ी उजड़ी सूनी सूनी
है जीवन की मधुशाला।
18
अच्छा है यह नशा चढ़ा है
पीकर थोड़ी-सी हाला
क्योंकि और ना बाँट सकी है
सूखी रूठी मधुशाला
जीवन में भी छिपा पड़ा है
ओंधा खाली हर प्याला
मरघट का ही रूप धरी है
मेरी बूढ़ी मधुशाला।
19
कहते हैं सहना पड़ता है
नशा अनोखा जो दे हाला
कदम कदम पर गिर जाता है
अहं हमारा मतवाला
गर्व अगर फिर भी है तुमको
निर्धन के घर जाकर देखो
उसकी पीड़ा देख जगत में
समझो क्या है मधुशाला।
20
इठलाती है, बलखाती है,
साकी-सा बन हर बाला
दर्पण में भी देख रही है
मस्त छलकती मधुशाला
यौवन के कलशों में लेकिन
उमर छिपानी पड़ती है
वरना अल्हड़ता आँधी की
बिखरा जाती मधुशाला।
21
पलने पर ही तूने दे दी
आँसू की मोटी माला
‘क्या हुआ रे’ बोल पड़ी थी
ममता की प्यारी हाला
मैं तो यूँ ही मूक पड़ा था
छलका कर आँसू धारा
गोदी मुझको लेकर माता
खोल रही थी मधुशाला।
22
सोच समझकर हे प्रभु कहना
किसका है सुन्दर प्याला
सोना, चाँदी, माणिक, मोती
लाखों बिकते हैं आला
पर मैंने तो दिल के टुकड़े
चुनवाये हैं खप्पर में
और हलाहल तुझसे लेकर
आ बैठा हूँ मधुशाला
अच्छे से चखकर ही कहना
किसकी है अच्छी हाला
फूलों का रस चुन चुनकर तो
बन सकती है मधु हाला
बिकती है बाजारों में भी
देश-विदेश बनी हाला
पर मैंने तो पीड़ा के रस से
भर डाली है मधुशाला।
24
पा लेता जीवन में सब कुछ
गर तुम दे जाते हाला
पीड़ा भी मिल जाती तो भी
भरकर पी जाता प्याला
अपयश भी यश बन जाता
पीता और पिलाता भी
मुझको आता देख पास में
खुलती जाती मधुशाला।
चल सकता तो चल ही लेता
पा जाता मैं मधुशाला
भर सकता तो भर भी लेता
क्यूँ रखता प्यासा प्याला
पर तूने अभिशाप दिया है
जीते जी मर जाने का
हुआ अपाहिज पड़ा हुआ हूँ
दूर खड़ी है मधुशाला।
26
सोचा था पा लूँगा मस्ती
बैठ तुम्हारी मधुशाला
बचपन, यौवन और बुढ़ापा
तीन बूँद की थी हाला
मचला बचपन, छलका यौवन
और बुढ़ापा भी आया
बनी मृत्यु की वो सब बूँदें
तजकर मेरी मधुशाला।
27
जीवन में झंकृत होता है
टूटी वीणा-सा प्याला
बिखरी साँसों की रुनझुन में
बहती है रग में हाला
संगीत पुराना हो फिर भी
गीत नया बन जाता है
गा उठती है रुँधे कंठ से
सिसक सिसककर मधुशाला।
कैद हुआ हूँ जिस जीवन में
वह है मेरी मधुशाला
हथकड़ियाँ ऐसी बजती हैं
जैसे खाली हो प्याला
मुक्त हुआ तो झूल पड़ेगी
फाँसी पर मेरी काया
भाग गया चुपके से तो
तड़प उठेगी मधुशाला।
तुम मुझको यह बतलाओ तो
क्यूँ पी जाती है हाला
मैं तो गम सब भुल चुका हूँ
पाकर गम की नव हाला
जख्म पुराने मिटा रहा हूँ
जख्म नये हो जाने पर
इस कारण ही पूछ रहा हूँ
है कैसी यह मधुशाला।
पीकर देखो यह प्याला
दुख का मधुरस इसमें ही है
कष्ट भरा है हर प्याला
जीव जगत में जितने भी हैं
अमर कहाने आते हैं
कुछ पल पीकर ही उठ जाते
तज जाते हैं मधुशाला।
31
मस्त वही जो छककर पीता
पीड़ा की कडुवी हाला
नाच उठे जो बैसाखी ले
थामे साँसों का प्याला
मुस्कानें जिन्दा रखने जो
अश्क हजारों पी लेता
उसके चरणों का आदर से
स्वागत करती मधुशाला।
32
किसको कितनी पीना है यह
पूछ रही थी सुरबाला
और लबालब कितने होंगे
बता रही थी मधुबाला
यह सुन सब जन चहक उठे पर
मैंने तो यह कह डाला
एक बूँद से ही भर लूँगा
मैं जीवन की मधुशाला।
33
पोंछ सके जो आँसू अपने
चुल्लू भर पीकर हाला
खप्पर से ही काम चला ले
तजकर जो स्वर्णिम प्याला
चलता हो जो कंटक पथ पर
थककर गिर जाने पर भी
भूल सके जो अपने दुर्दिन
उसकी होती मधुशाला।
34
जिसको देखो क्रोधित होकर
तोड़ रहा है हर प्याला
अपनी हस्ती मिटा रहा है
तोड़ स्वयं का मधुप्याला
अच्छा होता क्रोध त्याग कर
खुद ही वह संवर जाता
शांत चित्त से गर पीता तो
अलख जगाती मधुशाला।
35
छोटा-सा है मेरा जीवन
छोटी-सी है मधुशाला
आशा की छोटी बूँदों से
होता उल्लासित प्याला
बचपन की भी छोटी यादें
अशर्फियाँ-सी होती हैं
जिसे बुढ़ापा के चौखट पर
बिखरा देती मधुशाला।
36
जिसने पीना कल ही छोड़ा
वह देता मुझको प्याला
जिसे निभाना पड़ता वादा
वह सरकाता निज प्याला
मैंने तो छीना-छपटा है
आते-जाते प्यालों को
इसीलिये तो मुस्काती है
मुझे देख हर मधुबाला।
37
देनेवाले ने तो दी है
अभिशापों की भर हाला
जहर पिलाने अंतिम क्षण तक
व्याकुल रहता हर प्याला
नहीं कराहूँ विष पीकर भी
कसम खुदा की कहता हूँ
मैं तो स्वर्ग कहूँगा उसको
बने नरक गर मधुशाला।
38
जब मैं गम में मुस्काता हूँ
हँसता हर पीनेवाला
हर्षित होना पीड़ा में भी
समझ सका ना इक प्याला
होता है संघर्ष जटिल, पर
दुख की भी कुछ सीमा है
इस सीमा को लाँध सका हूँ
हरदम आकर मधुशाला।
39
बचपन की मधु मुस्कानों-सी
खिल जाती है मधुशाला
यौवन की उच्छृंखलता में
घुल मिल जाती मधुशाला
सोचूँ क्यूँ, तब क्या गति होगी
टूटेंगे जब सब प्याले
बूढ़ी ऑंखों तब भी होगी
वही नशीली मधुशाला।
40
विषमय जगत हुआ जाता है
गरल युक्त है मधुशाला
विष ही जग में खोज रहा है
जहर सदा पीनेवाला
वह साकी भी नहीं कहीं भी
जो देती थी मधु हाला
छोड़ चुकी है अदब पुराने
जितनी देखो मधुशाला।
41
मेरे शव पर गर्व करो सब
यह था मेरा मधु प्याला
अहं इसी का खाली करके
मैंने भर ली थी हाला
अब भी उसमें कुछ बूँदें हैं
‘यादें’ जिसको कहते हैं
इन यादों को ताजी रखने
जा बैठो तुम मधुशाला।
पीने का गुण पाप कहाता
पर पीकर देखो हाला
अवगुण सारे बह जाते हैं
रह जाता खाली प्याला
पाप पुण्य का गणित निराला
पाप घटे ना पुण्य बढ़े
इस घट-बढ़ का फर्क मिटाने
सब आते हैं मधुशाला।
43
जीवन को सब जीवन कहते
मैं कहता हूँ मधुशाला
शालायें तो पाठ पढ़ाती
सबक सिखाती मधुशाला
जीवन ने भी सबक लिया है
समझो पीड़ा को हाला
खुद को पहले मीत बना लो
फिर दो उसको मधु प्याला।
44
मेरे आने की आहट सुन
चहक उठी है मधुशाला
मेरे हाथों आते आते
नाच उठा है हर प्याला
साकी के नाजुक करकमलों
छलक उठी है मधु हाला
देख मुझे क्यूँ नाज न होगा
मेरी अपनी मधुशाला।
45
कंकड़ पत्थर से कौआ भी
छलका देता है हाला
हीरे मोती जिसने डाले
पा जाता है वह प्याला
मैंने पंचतत्व ऊँड़ेले
पा न सका इक मधुकण भी
जाने क्यूँकर तरसाती है
मेरी अपनी मधुशाला।
46
सावन भादों के प्यालों में
रहती है ऐसी हाला
जिसको पा यह धरती प्यारी
बन जाती है सुरबाला
हरी-भरी दूबों के सिर पर
होती बूँदोंवाली हाला
खेतों औ खलिहानों में भी
खुल जाती है मधुशाला।
47
गंगा जमुना का पाकर पानी
होता पुण्य पवित्र प्याला
पुण्य कमाने की चाहत में
कौन नहीं पीनेवाला
सबसे पहले साधू आता
पापी का अगुआ बनकर
तब सबको को साथ पिलाकर
तर कर जाती मधुशाला।
48
अपनी आँखों आँसू भरकर
आता शिशु भोला भाला
हाथ पकड़कर चलता ऐसे
ठुमक रहा हो मधु प्याला
गिरता पड़ता दौड़ लगाता
जैसे हो वह मतवाला
दिन भर सोकर, रात जागकर
खुद बन जाता मधुशाला।
49
चिंता का पंजा ढ़ीलाकर
पकड़ा देती है प्याला
सन्नाटे में शोर मचाने
खनका देती है प्याला
रोती आँखों की लाली को
और लाल कर जाती है
पीड़ा में यूँ क्रीड़ा करना
सिखलाती है मधुशाला।
50
संचित धन है पीड़ा मेरी
कहता जिसको मैं हाला
जीवन भर संग्रह कर डाला
किया सुसज्जित हर प्याला
लेकर आया हूँ इन सबको
तेरे चरणों रखने को
मृत्यु दूत से कहना, इनसे
स्वर्ग बनाना मधुशाला।
51
दिन ढ़लते जब मौत पुकारे
खुलवा देना मधुशाला
मेरे प्राणों के रत्नों से
भरवा देना हर प्याला
खाली हाथों मैं जाऊँगा
बात इसे तुम सच मानो
यह मधुशाला थी जो मेरी
सबकी होगी मधुशाला।
52
मेरा जीवन क्या बदलोगे
चाहो तो बदलो हाला
नहीं बदलने वाला मैं हूँ
बदलो चाहे तुम प्याला
जो कुछ मैं हूँ, जो है मेरा
और किया जो कुछ मैंने
सभी शून्य है और शून्य को
क्या बदलेगी मधुशाला।
53
दिन तो थकान भरा पथिक है
रात बनी है मधुशाला
मेरी क्लांत व शिथिल शक्तियाँ
उठा न पायें इक प्याला
अपनी पलकों से, हे साकी
एक बूँद ही टपका दे
तृप्त अगर मैं यूँ हो जाऊँ
पुलकित होगी मधुशाला।
54
शाप मृत्यु का मैंने पाया
मरते दम तक पी हाला
और मरण जब होगा मेरा
बिफरेगी हर मधुशाला
मत धिक्कारो साकी मुझको
होने दो, जो होना है
करो प्रार्थना बस तुम इतनी
बंद न होवे मधुशाला।
55
मुझसा अनमोल नहीं कोई
पावोगे पीनेवाला
अंत नहीं मेरे पीने का
यह जाने है हर प्याला
लज्जा की सीमा ना लाँधूँ
मैं ना डर से भी काँपूँ
मेरी तो सर्वश्रेष्ठ निधि है
साकी, प्याला, मधुशाला।
56
माटी का मैं बना हुआ हूँ
माटी का है हर प्याला
इनमें से केवल इक चुनकर
रखना मेरे नाम न प्याला
नाम हमारे तुम सब कर दो
दे दो मुझको सब हाला
पीकर जिससे कह पाऊँगा
मेरी है यह मधुशाला।
57
नहीं तिरस्कृत मैंने माना
चाहे जैसी हो हाला
टूटे-फूटे प्यालों से भी
पी लेता हूँ मैं हाला
टेढ़ी-मेढ़ी राह चलूँ मैं
चाहे बरसें अंगारे
पी सकता हूँ कहीं बैठ मैं
हर आसन है मधुशाला।
58
तेरी चाहत तू ही जाने
मेरी चाहत है हाला
इतर वासना तेरी होगी
इधर चेतना है हाला
काम क्रोध मद मोह तुच्छ हैं
त्याग सभी कर जाना है
जगे चेतना अगर कभी तो
तुम आ जाना मधुशाला।
59
जो है मेरे हृदय समाया
उसे रखे है मधुशाला
मेरे प्राण बसे हैं जिसमें
उसे सॅंवारे मधुशाला
इस कारण ही बड़े गर्व से
तृप्त तृड्ढा सब करने को
साकी, प्याला, हाला लेकर
तत्पर रहती मधुशाला।
60
बिखरेगी यह ज्ञात नहीं था
षांत हृदय की मधु हाला
छितरेगे यह ज्ञात नहीं था
मेरे कर्मो का प्याला
छोटे से झोंके में देखो
दीपक तक बुझ जाता है
यह तो आँधी थी चिन्ता की
कैसे बचती मधुशाला।
61
मरघट जाकर मैंने जाना
जलती कैसे मधुशाला
धुआँ जगाकर बुझना चाहे
जलती जलती मधुशाला
पर जो जल जाने ही आयी
बुझती कैसे मधुशाला
ढँढ़े से भी नहीं मिल पाती
‘खारी’ के दिन मधुशाला।
62
सूखे पत्तों की नाव बनाकर
जिसको कहता था प्याला
कह आया था उसे कान में
जा भर ला सागर हाला
पर सागर के तट पर बच्चे
नाव चुराने आ धमके
छीना-छपटी में तब टूटी
नाव रूप की मधुशाला।
63
ऊपर औंधा पड़ा हुआ था
मौन हुआ नभ का प्याला
नीचे सागर क्षुब्ध पड़ा था
बिखराकर अपनी हाला
खाली कौड़ी पा तब मैंने
भरना चाही कुछ बूँदें
पर कौड़ी में छिपी पड़ी थी
त्यक्त जीव की मधुशाला
64
है कद गरीब के जितना ही
वो है मेरी मधुशाला
नहीं थिरकती बालायें हैं
पर है सकुचाती बाला
चुनरी जिसकी फटी हुई है
शून्यता को लजा रही
इसकी थरथर साँसों में है
मेरी जरजर मधुशाला।
65
मेरा करुण रुदन असीम है
पर निष्ठुर है मधुशाला
आँसू पर प्रतिबन्ध लगाती
मुझको देकर कुछ हाला
जिसने दया-मर्म ना जाना
उससे परिचय रखना क्या
पर परिचय खुद मेरा पाने
रहती उत्सुक मधुशाला।
66
बादल पर बादल छा जायें
तम भी हो घिरनेवाला
लेकर अपना बुझा दिया तुम
छिपके आना मधुशाला
प्यास चमकती दिखलायेगी
उठती हाला की ज्वाला
अंधकार का अनुचर बन तुम
पा जावोगे मधुशाला।
67
मुझे देखकर जाने क्यूँकर
था उल्लास भरा प्याला
उसने सोचा मैं भी इक हूँ
जीवन भर पीनेवाला
इस कारण ही छलक पड़ा था
मेरे हाथों आते ही
बही सुरा भी जब चरणों पर
इठलाती थी मधुशाला।
बुझा हुआ सा दीपक मन का
जैसे हो खाली प्याला
जिस पर लिखने भाग्य हमारा
हैं कुछ बूँदों-सी हाला
पर जीवन कोरा कागज-सा
भींग चुका है ऑंसू में
लिखे कहॉं आशा की बूंदें
भाग्यहीन यह मधुशाला।
69
पीछे मुड़कर नहीं देखता
जो पा जाता मधुशाला
कोई शक्ति रोक ना पाये
हाथों में जब हो प्याला
कोई ताकत उठा न पावे
पीने बैठा जब हाला
तृप्त हुआ है कौन यहाँ पर
छोड़ सके जो मधुशाला।
70
सबमें अनंत प्यास छिपी है
जो भी है पीनेवाला
सबमें अटूट चाह जगी है
उठा रहा जो मधु प्याला
सबमें असीम आस यही है
पा जावेगा वह हाला
पर अनिच्छा जताती क्यूँ है
मेरी अपनी मधुशाला।
71
सागर उठ नभ में भर जाता
जब मय भर उठता प्याला
पहले थे बस नभ में तारे
जैसे बूँद-बूँद हो हाला
फैल चाँदनी ने प्रकाश से
फिर सारा नभ भर डाला
साकी तू है वही चाँदनी
मटक रही जो मधुशाला।
72
जिसको तूने गुरू कहा था
आ बैठा है मधुशाला
तुझे देखकर छिपा रहा है
अपनी मदिरा का प्याला
अच्छा होता तू गर खुद को
गुरू मान पीता हाला
शिक्षा दीक्षा सब यहँ मिलती
मठ बन जाती मधुशाला।
73
भक्तों के प्रेमार्त हृदय में
भर दी तूने जो हाला
इसकी कुछ बूँदें लेकर तू
भर जा मेरा भी प्याला
मैं भी तेरा भक्त कहाऊँ
इतनी सी बस इच्छा है
इस इच्छा से के कारण होगी
मेरी तुझसी मधुशाला।
74
मेरे निर्जन घर के द्वारे
दीप नहीं जलनेवाला
मेरे निर्धन प्यालों को अब
कोई नहीं भरनेवाला
और विसर्जन को तड़पेगी
ठंडी होकर भी भस्मी
मेरा अंतिम दर्शन पाने
क्यूं तरसेगी मधुशाला।
75
खत्म हुई मस्ती की वेला
अब न भरा जाता प्याला
पंखुड़ियाँ टूट टूटकर बिखरी
अब न गुँथी जाती माला
पत्ते पत्ते की तीव्र वेदना
झरती साँसें ही सहती
सजल पलक से व्याकुल प्याले
गिन गिन रखती मधुशाला।
76
भरा हुआ था जो जीवन भर
वह प्याला है बिन हाला
सूखा प्यासा तड़प रहा है
मेरा निर्धन यह प्याला
जीवन की इन साँसों में भी
स्पर्ष नहीं है आशा का
और हताश करो ना मुझको
बंद करो यह मधुशाला।
77
पूर्ण रूप से समा गयी है
मेरी रग रग में हाला
हृदय कोष में पूर्ण रूप से
संचित धन है बस हाला
मृत्यु देव, अब चिन्ता मत कर
सीधे आ जा मधुशाला
स्वागत करते मिल जावेंगी
मैं औ मेरी मधुशाला।
78
जीवन तो है एक बुलबुला
तैरा करता बन हाला
जिसमें बनता उसमें ही वह
फूटा तो फूटा प्याला
मंद पवन में उड़ भी जावे
झूमे जैसे हो मतवाला
इसका बनना, मिट भी जाना
दिखला देती मधुशाला।
79
मैं आया था गीत सुनाने
पर पी बैठा मैं हाला
चला साधने अपने सुर को
भरा सुरा से सुर प्याला
करूँ व्यक्त क्या अपनी पीड़ा
उठने के योग्य नहीं था
डगमग डगमग मंच दिखा था
डोल रही थी मधुशाला।
80
अब मुझसे तुम मुख मत मोड़ो
आया हूँ मैं मधुशाला
मेरा भी सत्कार करो अब
मुझको भी दो इक प्याला
कल तक जब परहेज किया था
दुत्कारा ही जाता था
अब तो अपना मीत बना लो
रम जाने दो मधुशाला।
81
मिला निमंत्रण धन्य हुआ मैं
बुला रही थी मधुशाला
भिक्षा पात्र इक लिये बिना ही
आ बैठा हूँ मधुशाला
वहाँ पहुँच कर मैंने पूछा
बिना पात्र क्या मिलता है
अंधे को क्या आँसू देगी
बिना पात्र के मधुशाला।
82
मैंने चाहा तुम दे दोगे
मुझको अमृत भरा प्याला
पर जाने अनजाने तुमने
मुझको दे दी बस हाला
पर तेरे छू जाने से ही
अमृत बनी है सब हाला
स्वर्ग सरीखी तब से लगती
मेरी अपनी मधुशाला।
83
जब जब मेरी प्यास जगी तो
पी लेता हूँ मधुहाला
जब भी शक्ति अंकुरित होती
भरने लगता हूँ प्याला
चाह भक्ति की जब उमड़े तो
आ जाता हूँ मधुशाला
कर्म धर्म सब निपटाता हूँ
बैठे बैठे मधुशाला।
84
मुझे कुम्हार समझा तूने
देख हाथ में यह प्याला
तूने समझा सींच रहा है
कृषक बना मैं मधुशाला
मैं गरीब हूँ तूने सोचा
बना रहा जो पर्ण कुटी
पर मैं खुद को बना रहा था
इक मनमौजी मधुशाला।
85
लिया पात्र तुमसे ही मैंने
भरने को तेरी हाला
पर तूने दिया मुझे था
दरका-सा खाली प्याला
तेरा तुझको अर्पित करने
लाया हूँ खाली प्याला
दरका प्याला भर न सकी थी
मेरी छोटी मधुशाला।
86
मेरे करीब तुम आ बैठे
जब पीता था मैं हाला
तुने ही तब दिया मुझे था
अपना भी इक प्याला
मस्त हुआ मैं पीकर दोनों
पीते ही मदहोश हुआ
क्षुब्ध हुआ तब छोड़ चला तू
तजकर मेरी मधुशाला।
87
इक रेखा यह बता रही है
कितनी भर सकते हाला
दूजी रेखा से यह जाना
खाली है कितना प्याला
इन दोनों रेखा का अंतर
कम कर सकती जो साकी
वह बनती है चिंतन-रेखा
चंचल चिंतन मधुशाला।
88
किस सीमा तक पीना मुझको
बतला दे गर मधुशाला
मैं भी साँसें रोक सकूँगा
पीते पीते मधुहाला
सीमा तो सीमा होती है
उसके आगे क्या पीना
देह त्यागना उत्तम होता
तज जाने से मधुशाला।
89
मेरे भीतर खुली पड़ी है
एक अनोखी मधुशाला
मेरे अंतर के प्रकाश में
जो छवि दिखलाती हाला
उस छवि को देखा करता
बिना हिलाये मैं प्याला
हिल जाने से मिट जाती है
वह छवि, वह मधुशाला।
90
तुमसे मिलने नीचे उतरा
अहं त्याग पी ली हाला
नीचे नीचे उतर चला हूँ
पीते पीते विड्ढ प्याला
तू तो सिंहासन से उतरा
मैं उतरा मन अंतर से
तेरे मेरे मिलन बिन्दू पर
निराकार है मधुशाला।
91
था थकान का पर्दा भारी
भरा नींद से था प्याला
‘पी ले, पी ले’ तब चिल्लाया
‘यह ताकत देती हाला
‘जब तक इसकी बूँद पियोगे
नषा नींद ले जावेगा
आँच स्फूर्ति की ही देती है
यह अलाव सी मधुशाला।’
92
प्याले बंदी बना रहे थे
गूँथे जाते थे माला
जंजीरों से जकड़ रही थी
लत-सी बनकर यह हाला
मैंने सोचा तोड़ चलूँ मैं
साँसों की जंजीरों को
खोल द्वार जब मुक्त हुआ तो
बंद दिखी थी मधुशाला।
93
संयम कोई संघर्ष नहीं है
संयम से पी लो हाला
स्पर्श वही आनंद दिलाता
अधरों देता जो प्याला
पीनेवालों की वाणी में
अतुल श्रवण-सुख मिलता है
सच्चा दर्शन वह करवाता
जो दिखलाता मधुशाला।
94
ऐसा भी उपकार करो तुम
मिल जावे पीनेवाला
जो पीने के पहले से ही
बन जाता है मतवाला
गर जीवन यात्रा पर निकले
मेरा साथी बनकर वो
तब सफर के सभी मुकाम पर
खुल जावेगी मधुशाला।
95
कटु भाषा ही नहीं जानता
सुरा सदा पीनेवाला
‘मधु दे दो’ कहता मधुता से
रिक्त देखकर वह प्याला
वरना सब जन गुर्राकर ही
मधु से मध्ता मुखरित होती
कहती है यह मधुशाला।
96
मैं पीड़ा की साँसों से ही
भरता जाता हूँ प्याला
इस कारण यह साँसें थककर
बनती जाती हैं हाला
हर बूँदों में दर्द भरा है
करुणा सागर मधुशाला
रग रग में रंभाती जाती
दर्द भरी यह मधुशाला।
97
मैं पीड़ा के फूलों से ही
भरता जाता हूँ प्याला
इस कारण ही काँटा बनकर
चुभती कंठों में हाला
इन प्यालों को चूरा कर दो
और बिछा दो राहों पर
कंटकमय हर पथ पर ही तब
खुल जावेगी मधुशाला।
98
दूर गगन में मधुशाला हो
पंख रहित भी हो प्याला
गंध भरे हों बादल ऊपर
ना बरसाते हों हाला
तब भी पीने की अभिलाषा
व्यर्थ नहीं होगी मेरी
मैं प्राणों को मुक्त करूँगा
पा जाऊँगा मधुशाला।
99
आज किनारा छू प्याले का
छलक उठेगी मधु हाला
आज नाव डालेगी लंगर
जैसे अधर छुए हाला
प्यासे नाविक उतर सकेंगे
जीवन के सागर तट पर
वह पड़ाव भी मंजिल बनकर
दिखला देगा मधुशाला।
100
सृष्टि का नया सृजन हुआ था
नया नया था हर प्याला
नई तरंगें उठा रही थी
हिलते प्यालों की हाला
उड़े खगों-से भाव सभी नव
मन की डालें लचक उठीं
सुप्त पूर्णता सजग बनी तब
दिव्य पूर्णता मधुशाला।
101
तेरे चरणों में रख दी है
मैंने प्यालों की माला
और समर्पित करता हूँ मैं
हे साकी ! तेरी हाला
मेरे चरणों बस गिरते हैं
मेरी आँखों के आँसू
चुन सकता गर इन आँसू को
भरता तेरी मधुशाला।
102
साँसों के प्यालों की दरकन
बहा चली है सब हाला
बिखरी साँसों की धड़कन है
कंपित ऑंसू की माला
पूजा की थाली यह तन की
सजती क्या इन फूलों से
जिसकी टूटी पंखुड़ियाँ हैं
महकायें क्या मधुशाला।
103
नई ज्योति से तुझे रिझाने
मन दीप-शिखा, तन प्याला
दहक उठी है अंगारों-सी
चिंतन मनन बनी हाला
तेरी स्वर्णिम आभा पाकर
धधक उठी गर कुछ साँसें
और प्रकाशित कर पाऊँगा
अपने मधु से मधुशाला।
104
आश्वासन बस इतना दे दे
होगा भरा हुआ प्याला
और निष्चिन्तता से देगी
सारी हाला, सुरबाला
थकी पलक की चादर में तब
सो जावेगा मेरा मन
सपनों में ही मिल जावेगी
मेरी अपनी मधुशाला।
105
पीड़ा की रागिनियाँ सारी
भरे कहाँ से इक प्याला
गीतों का हर स्वर शिथिल है
कैसे छलकाये हाला
फिर भी ललचाती चाहत है
बन जावे संगीत मधुर
गीतों में आनंद समाये
खोलूँ ऐसी मधुशाला।
106
हृदय-गगन का हर इक तारा
जैसे दुख का हो प्याला
इन तारों में झिलमिल पीड़ा
छलके जैसे हो हाला
इस कारण प्यासा मन पंछी
पंख पसारे उड़ने को
थक जाने पर लौट सके ना
पाने अपनी मधुशाला।
107
लहरों में यह षोर मचा है
आज तरंगित है हाला
नावें हैं पतवार रहित सब
हर नाविक है मतवाला
आँधी के कोलाहल छिपती
सन्नाटे की छाया है
और तमन्ना सागर की है
बन जावे वह मधुशाला।
108
जीवन और मरण की छाया
दिखलाये आधा प्याला
खालीपन तो मरण तुल्य है
जीवन है बाकी हाला
जैसे जैसे साँसें मिटती
प्याला खाली हो जाता
साँसें मिलती नहीं कहीं भी
प्याला भरती मधुशाला।
109
नहीं सोचकर आता कोई
कितनी पीना है हाला
किसको कितनी पीना है
यह बतलाती मधुशाला
हाथों में आने तक छलका
प्याला भी बतलाता है
विष तो मैंने छलका डाला
देता हूँ मैं बस हाला।
110
सब मंदिर में जाते हैं पर
मैं जाता हूँ मधुशाला
सब पूजें माटी की मूरत
मैं पूजूँ माटी प्याला
फिर भी धर्म वहीं बसता है
जहँ श्रृद्धा पनपा करती है
मेरी श्रृद्धा के कारण है
मंदिर-सी यह मधुशाला।
111
फटी पुरानी पुस्तक लेकर
मैं आया था मधुशाला
सोचा था मैं इसे बेचकर
पा जाऊँगा कुछ हाला
पर पुस्तक पर नाम देखकर
साकी बोली, ‘ना बेचो’
यह पुस्तक उसकी है जिसने
खोली सारी मधुशाला।
112
वेद, कुरान, बाइबिल पढ़कर
मैंने पायी जो हाला
मिली न वैसी मुझको अद्भुत
भटका सारी मधुशाला
पर इनको पढ़कर जब मैंने
अपने अंतः में झाँका
मुझे दिखी तब वहीं छिपी-सी
भगवन तेरी मधुशाला।
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सच 'बाबू जी की याद आ गयी.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों का चयन किया गया है.
- डॉ. विजय तिवारी 'किसलय'