पीड़ा गर अक्षर बन जाए
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ....
आँसू से उसको लिख दूँ
कंपित अधरों से लय लेकर
अपने गीतों को गूँथ लूँ
इन गीतों को सुन जो रोये
समझूँ वो ही अपना है
उनकी गीली पलकों में भी
उतरा अपना सपना है
इन सपनों का मधुरस लेकर
आँसू भी मधुमय कर लूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ....
मेरा आँसू , उसका आँसू
गंगा जमुना संगम है
तीरथ बने जहाँ मन मेरा
आँसू बहता हरदम है
दुःख का अर्जन , सुख का तर्पण
मन तीरथ में ही कर लूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ....
आँसू है पीड़ा का दर्पण
इसमें अपनी है सूरत
कुछ रुकते , कुछ बहते आँसू
रचते पीड़ा की मूरत
करने नव सिंगार नयन का
आँखों में आँसू भर लूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ....
नम पलकें हैं दुःख की कविता
आँसू बहना सरगम है
अश्क बने हैं मृदुल शायरी
दिल ही जिसका उदगम है
आँसू तो है नन्हे शिशु सा
उसे चूम मन हल्का कर लूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ....
जग के कोलाहल में क्रन्दन
करुणा का है नित आकर्षण
और सिसकियाँ रुंधे कंठ की
दुःख की है मौन समर्पण
रोक सिसकियाँ , आँसू पीकर
इसकी क्यूँ हत्या के दूँ
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प्रकृति के प्रति
चलो गीत ऐसा लिख जायें
ओठ फूल दे खुल खुल जाएं
सप्त सुरों की सरगम में भी
सप्त रंगों की महक जगाएं
चलो गीत ऐसा लिख जायें
ओठ फूल दे खुल खुल जाएं
गीत बसें जा उन डाली पर
जिन पर पंछी नीड़ बनावें
नीड़ों के आँगन में भी जा
चहक चहक कर प्रीत जगावें
चलो गीत ऐसा लिख जायें
ओठ फूल दे खुल खुल जाएं
पास कहीं झरनों में छिप कर
बूँद बूँद से घुल मिल कर
और धुंध के सघन पटल पर
इन्द्र धनुषी छटा बिखराएँ
चलो गीत ऐसा लिख जायें
ओठ फूल दे खुल खुल जाएं
गुंजन करते भ्रमर सरीखे
शब्द अर्थ पर जा मंडरायें
और जगत के कोमल उर पर
गीतों की झंकार जगाएँ
चलो गीत ऐसा लिख जायें
ओठ फूल दे खुल खुल जाएं
प्रकृति का श्रृंगार सलोना
सारा महका बहका जावें
पगडण्डी की पायल को भी
रुनझुन रुनझुन खनका जावें
चलो गीत ऐसा लिख जायें
ओठ फूल दे खुल खुल जाएं
संग प्रकृति के सृष्टि सजेगी
इसी सोच के गीत सजावें
लेकर गुच्छ सुरों का सुन्दर
गीतों में जा हम रम जावें
चलो गीत ऐसा लिख जायें
ओठ फूल दे खुल खुल जाएं
०००००
मैं तुमको याद किया करता हूँ
मैं तुमको याद किया करता हूँ
जब सागर पर किश्ती होती
ऊँची ऊँची लहरें होती
और दूर से आँधी आकर
उसे निगलने खूब मचलती
बैठ किनारे बाट जोहता
वह मैं हूँ
या हो मेरा अपना कोई
तब तुमको याद किया करता हूँ
जब जर जर कुटिया के अन्दर
प्यारा नन्हा सोया हो तो
बाहर भीड़ लगी हो जिसके
भीतर सब कुछ जलता हो
लौट रहा हो उस कुटिया में
वह मैं हूँ
या हो मेरा अपना कोई
तब तुमको याद किया करता हूँ
लाशें लाखों सड़कों पर हों
चहुँ ओर बस सन्नाटा हो
उन चिथड़ों को उलट पलट कर
या पास उसी के बैठा हो
सिसक सिसक कर रो पड़ता हो
वह मैं हूँ
या हो मेरा अपना कोई
तब तुमको याद किया करता हूँ
धरती के कम्पन के कारण
घर बाहर कुहराम मचा हो
तब मलवे के नीचे कोई
तडप रहा हो , चीख रहा हो
उसे बचाने बेचैन बना
वह मैं हूँ
या हो मेरा अपना कोई
तब तुमको याद किया करता हूँ
सरहद पर जो सीना ताने
दुश्मन को ललकार उठा हो
लड़ते लड़ते जख्मी होकर
अंतिम क्षण तक खूब लड़ा हो
उसकी अर्थी लेने आया
वह मैं हूँ
या हो मेरा अपना कोई
तब तुमको याद किया करता हूँ
00000
मुझ पर मेरे गुनाहों का सेहरा रहने दो
मुझ पर मेरे गुनाहों का सेहरा रहने दो
मेरे चहरे पर मेरा ही चहरा रहने दो
जब तक खुद वो अपने गुनाह न कबूल करे
तुम इन गवाहों को गूँगा बहरा रहने दो
कितनी मिन्नतो के बाद ये बहार आई है
अब मौसम न बदले , हवा का पहरा रहने दो
वो बूढा शजर चिड़ियों का बड़ा प्यारा है
अब के खिजा में कुछ पत्तों को हरा रहने दो
गूँगे बहरे का अह्सास जरा न होने दो
होठों पर सन्नाटा तुम भी गहरा रहने दो
मेरी माँ के आँसू अब और न बहने दो
मेरी फोटो पर गुबार का कुहरा रहने दो
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चलो आज फिर दिल को मनाया जाये
चलो आज फिर दिल को मनाया जाये
यादों की किश्ती को सजाया जाये
यूँ नंगे बदन कब तक चलोगे ,यारों
चलो फिर किसी का कफन चुराया जाये
इस शहर को और भी सजाया जाये
हर लाश को चौक पे बिठाया जाये
जला दिया जाता है हर घोंसला यहाँ
क्यूँ न इस चमन को जलाया जाये
पढ़कर ग़ज़ल बहुत जो रोना आ गया
क्यूँ न इसे अश्क से मिटाया जाये
पर शिकस्ता हूँ यह जन लो हवाओं
अब सोचो कि मुझे किधर उडाया जाये
माना कि मेरी कलम सूरते शमशीर है
चलो पढना किसी इक को सिखाया जाये
चलो इस शहर को फिर से जगाया जाये
कल का अख़बार फिर बिकवाया जाये
जिस दरो दीवार पे ख़ामोशी लिखी है
अच्छा हो उसे ही खटखटाया जाये
पाजेब कि ख़ामोशी कब तक सुनोगे
जंजीर कि आवाज को जगाया जाये
इधर जिस्म के जलने कि बू आती है
चलो, दहेज़ इसी शहर में जलाया जाये
०००००
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मामृतम गमय
O Lord, Thou lead me
from untruth unto truth
from darknes unto light
from death unto divinity.
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तमस भरे अंतर को मेरे
तमस भरे अंतर को मेरे
आलोकित तुम कर जाओ
औ असत्य की आग बुझाने
सत्य मेघ तुम बन जाओ
जग में भीड़ बहुत है फिर भी
कदम सभी के थके हुए हैं
जो चलते हैं , गिर पड़ते हैं
लाश वहीँ पर बने पड़े हैं
राह हजारों दिख पड़ती हैं
दिशा नरक की दिखा रहीं हैं
पर वह राह कहाँ से पाऊँ
जो तेरा साथ दिखाती हैं
पा जाऊं गर वह पथ तो तुम
पदचिन्हों से भर जाओ
और साथ तुम मेरे चलकर
मुझ में साहस भर जाओ
तमस भरे अंतर को मेरे
आलोकित तुम कर जाओ
चहुँ ओर जो कोलाहल है
उसमें पीड़ा चीख रही है
और सुबकती साँसें में छिप
ख़ामोशी खुद पे खीज रही है
नहीं कहीं है गूँज ख़ुशी की
गीतों के सुर भी गुमसुम हैं
करूँ प्रार्थना तन्हाई में
जहाँ खिले बस शांत कुसुम हैं
वसंत रितु सा खिलूँ जगत में
जीवन ऐसा कर जाओ
मुरझाये मन की कलियों में
गंध नयी नित भर जाओ
तमस भरे अंतर को मेरे
आलोकित तुम कर जाओ
हिंसा के ही पर फैलाकर
उड़ते फिरते हैं मानव जन
जख्मों की बारात सजाये
झूम रहे हैं व्याकुल तन मन
नहीं आलोकित कर पाती है
नन्हे दीपक की बाती
आंधी तूफानों में घिरकर
नव नहीं है तट पर जाती
व्यथित हृदय के कंपित सुर में
गीत अनोखा भर जाओ
और सुखद स्मृतियों का स्पंदन
बस साँसों में भर जाओ
तमस भरे अंतर को मेरे
आलोकित तुम कर जाओ
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